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निका
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बहुरि भेद छहप्रकार है, उत्कर चूर्ण खंड चूर्णिका प्रतर अणुचटन ऐसें । तहां काष्ठ आदिकं करोत आदिकरि विदारये | 8 सो उत्कर है । बहुरि जो गेहूं आदिका चून होय सो चूर्ण है । बहुरि घट आदिका कपाल आदि होय सो खंड है ।
बहुरि उडद मूग आदिकी दाल आदि होय सो चूर्णिका है । बहुरि मोडल आदिके पत्र उतारिये सो प्रतर है। बहुरि |
लोहका पिंड अग्नितै तपाय घणकी चोट दे तब फुलिंग उछल तार्क अणुचटन कहिये । ऐसें छह भये ॥ सर्वार्थसिद्धि
| बहुरि तम है सो प्रकाशका विरोधी दृष्टिके प्रतिबंधका कारण है, ताकू अंधेरा कहिये है ॥ टीका बहुरि छाया प्रकाशके आवरणका कारण है । सो दोयप्रकार है । तहां कांचविर्षे मुखका वर्णादिरूप परिणवना भ ५५ इत्यादिक सो तद्वर्णपरिणत कहिये । बहुरि दूजी प्रतिबिंबस्वरूपही है ॥
बहुरि आतप सूर्यके निमित्तते उष्णप्रकाश होय सो कहिये ॥
बहुरि उद्योत चंद्रकांतमणिका उजाला तथा आक्षाका चमकणा इत्यादिक है। एते शब्द आदि पुद्गलके विकार हैं। | ए जिनकै होय ते सर्व पुद्गल हैं ।
बहुरि सूत्रमें च शब्द है ताते प्रेरणा अभिघात आदि भी जाके होय ते भी लेणा । ते आगममें प्रसिद्ध हैं, तिनका समुच्चय करै हैं । इहां केई अन्यमती शब्दकू आकाशका गुण कहै हैं । केई अमूर्तिक द्रव्य कहै हैं । केई स्फोटस्वरूप कहै हैं । सो यह कहना प्रमाणसिद्ध नाहीं । शब्द है सो श्रोत्र इन्द्रियका विषय है । आकाश अमूर्तिक है तातें ताका गुण नाहीं । तथा अमूर्तिक द्रव्य भी नाहीं । बहुरि स्फोटरूप कहै सो अर्थका प्रगट करनेवाला स्फोट तौ वक्ताका ज्ञान हैं अर शब्द श्रवणमें आवै है, सो है, अन्य कछु न्यारा स्फोट प्रमाणसिद्ध नाहीं । तातें पुद्गलद्रव्यका पर्याय कहनाही प्रमाणसिद्ध है । याकी चरचा वार्तिकमें विशेपकार है, तहातै जाननी ॥ आगे कहे जे पुद्गलद्रव्य तिनके भेद दिखावनेकू सूत्र कहै हैं
॥ अणवः स्कन्धाश्च ॥ २५ ॥ याका अर्थ-पुद्गलद्रव्यके अणु स्कंध ऐसे दोय भेद हैं । तहां एकप्रदेशमात्र है अर स्पर्श आदि पर्यायनिकी उपजावनेकी सामर्थ्ययुक्त है, ऐसें अण्यन्ते कहिये कहने में आवै ते अणु है । सूक्ष्मपणांतें आपही तौ जिनकै आदि है आपही अंत है आपही मध्य है । इहां उक्तंच गाथा है, ताका अर्थ जाके आपही आदि है आपही मध्य है आपही अंत्य है इन्द्रियगोचर नाहीं है, जाका दूसरा विभाग नाहीं हाय है ऐसा परमाणु द्रव्य जानूं ॥ बहुरि स्थूलपणांकरि जाके