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होय है । सो शक्तिकी अपेक्षा सर्वपरिणाम द्रव्यमें तिष्ठै हैं, व्यक्तिकी अपेक्षा एककाल एक है, तामै दूजी नाहीं है ।1।।
ऐसे द्रव्यमै तिष्ठै भी है, नाहीं भी तिष्ठै हैं । ऐसें स्याद्वाद जानना । इत्यादि अनेक विधिनिषेधकरि चरचा है। तहां I | स्याद्वादही निर्बाधसिद्ध होय, सर्वथा एकान्तपक्ष निर्बाध नाहीं ॥
आगें पूछे है, धर्म अधर्म आकाश पुद्गल जीव काल इनका उपकार कहे । बहुरि लक्षण भी कह्या । बहुरि पुद्गलनिका सर्वाय
वचGSTRI सामान्यलक्षण तो कह्या । अर विशेषलक्षण न कह्या । सो कहा है ? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैटीका
॥ स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः ॥ २३ ॥ । याका अर्थ- पुद्गल हैं ते स्पर्श रस गंध वर्ण इन च्यारि गुणनिकरि सहित है । तहां जाकू स्पर्शिये अथवा 81 . TRI जो स्पर्शना सो स्पर्श है, सो आठ प्रकार है । कोमल कठिण भारी हलका शीत उष्ण चीकणा रूखा ऐसें । बहुरि
जावू स्वाद लीजिये अथवा जो स्वादमात्र सो रस है । सो पंचप्रकार है । तीखा खाटा कठा मीठा कसायला ऐसें । 12 बहुरि जाकू सूंघिये अथवा सूंघना सो गंध है । सो दोयप्रकार है । सुगंध दुर्गध ऐसें । बहुरि जाकू वर्णरूप देखिये । अथवा वर्णरूप होना सो वर्ण है । सो पांचप्रकार है । काला, नीला, पीला, धौला, लाल ऐसें । एते ए मूलभेद हैं
इनके उत्तरभेद न्यारेन्यारेके कीजिये । तब स्थानकनिकी अपेक्षा तौ संख्यात असंख्यात हैं। बहुरि अविभागप्रतिच्छेदशनिकी अपेक्षा अनंत भी हैं । ए जिनके होय ते पुदगल हैं । इहां नित्ययोगविर्षे वत्प्रत्यय है । जैसें बड हैं ते दूध| सहित हैं, ताकू 'क्षीरिणो न्यग्रोधा' ऐसा कहिये । ऐसे प्रत्यक्षका अर्थ है ॥
___ इहांतक, जो, पूर्व सूत्रमें 'रूपिणः पुदगलाः' ऐसा कह्या है । तातें रूपते अविनाभावी जो रसादिक तिनका ग्रहण तिसही सूत्रतें होय है, यह सूत्र अनर्थक है । ताका समाधान, जो, यह दोष नाहीं है । तहां तौ 'नित्यावस्थितान्यरूपाणि' इस सूत्रमें धर्मादिक अरूपी कहे तहां पुदगलनिकै भी अरूपीपणाका प्रसंग आवै था, ताकै दूर करनेकू निषेधसूत्र कह्या था । बहुरि इहां यह सूत्र तिन पुदगलनिका विशेषस्वरूप जाननेकू है । इहां अन्यमती कहै है। पृथ्वी आदिके परमाणु जातिभेदरूप हैं । तहां जलविर्षे तो गंधगुण नाहीं है । अग्निकेविर्षे गंध रस दोऊ नाही हैं । पवनके विर्षे रस गंध रूप ए तीनि गुण नाहीं हैं ऐसा कहै हैं, तिनका निपेध इस सूत्रमें भया । जातें पृथ्वी जल अग्नि पवन ए
चार्योंही पुद्गलद्रव्यके विकार हैं, पुद्गल हैं ते स्पर्श आदि चायोंही गुणनिसहित हैं । पृथ्वीआदिविर्षे चाों गुण का अनुमान आगमप्रमाणकारि सिद्ध होय हैं । बहुरि पृथ्वीते जल होना, जलतें पृथ्वी होना, पाषाण काष्ठतें अग्नि होना, 11
पान
Lal कया था । बहार में धर्मादिक अरूपाचक है । ताका समाधाया है । तात रूपते अनि
परमाणु जातिभदरे यहां यह सूत्र तिन पुढे तहां पुदगलनिक भान जो, यह दोप नाहविनाभावी जो रसादिक गंध रूप र तीन गु हैं । तहां जलविय तालनिका विशेषस्वरूप अरूपीपणाका प्रसंगी है । तहां तो नियतिनका ग्रहण