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सवोथे
वच
पान
। आदिक द्रव्य हैं, ते अपने पर्यायनिकी उत्पत्तिरूप वर्ते हैं, सो आपहीकरि वर्ते हैं। सो तिस वर्तनाकं बाह्यनिमित्त चाहिये । ।
जाते बाह्य उपकार निमित्त विना वर्तना होय नाहीं । तहां तिस वर्तनाका समय है सो कालका चिह्न है। तातें तिस द्रव्यनिकै प्रवर्त्तावनेहारा कालद्रव्य है । तातें तिस समयस्वरूप वर्तना• कालका वर्तना कहिये । याकरि कालका निश्चय कीजिये है ।
इहां णिच् प्रत्ययका यह अर्थ जो वर्तावै सो काल है । इहां वतै तौ सर्वद्रव्यनिके पर्याय हैं ताका हेतु कर्ता काल है ॥ सिद्धि
__इहां कोई कहै है, जो, ऐसा है तौ कालकै क्रियावान्पणा आया । जैसे शिष्य पढे है उपाध्याय पढावै है तब दोऊ : निका टीका || क्रिया हो है । ताकू कहिये, इहां दोष नाहीं है । निमित्तमात्रके वि भी हेतु कर्ताका व्यपदेश है । जैसे शीतकालमें
अग्नितें तपते शिष्य पढे है। तहां ऐसें भी कहिये है, जो, कारी बाकी अग्नि पढाव है । तैसें इहां कालकै हेतु कर्ता- २२४ पणा है । बहुरि पूछे है ऐसे कालके समयका निश्चय कैसे कीजिये १ तहां कहिये है, समय आदि क्रियाविशेष तथा
समय आदिकरि कीजिये जे पाक आदि कार्य तिनकू समय तथा पाक इत्यादिक नाम प्रसिद्ध हैं । तिनकू समयकाल | तथा भातका पाककाल ऐसा आरोपण कीजिये हैं । भात अनुक्रमते पच्या है ताका पचनेका क्रम कालका सूक्ष्म अंशका
अनुमानते निश्चय भया है । ताकू काल ऐसा नाम कहिये है । सो यह व्यवहारकाल है । ताका नामकू निमित्त जो निश्चयकाल ताका अस्तित्व जनावै है । जाते गौण होय सो मुख्यविना होय नाहीं ॥
इहां भावार्थ ऐसा, जो, धर्म आदि द्रव्यनिके पर्याय समय समय पलटें हैं । सो इप्त पलटनिकू समय है सोही । PI निमित्तमात्र है । तिस समयहीकू कालकी वर्तना कहिये है । यह वर्तनाही कालाणुद्रव्यका अस्तित्व जनावै है । बहुरि | इस वर्तनाकू जेती वार लागी ताका नाम काल कहिये । सो यह व्यवहारकालसंज्ञा है, सो तिस निश्चयकालकी अपेक्षाहीते कहिये है । ऐसें यह वर्तना द्रव्यनिकू कालका उपकार है । बहुरि द्रव्यका पर्यायकू परिणाम कहिये । कैसा है पर्याय ? पहली अवस्थाकू छोडि दूसरी अवस्थारूप भया हैं। बहुरि क्षेत्रसू क्षेत्रातरविर्षे चलनरूप नाहीं है । तहां जीवकै तौ क्रोधआदि परिणाम हैं । बहुरि पुद्गलके वर्णआदि परिणाम हैं। धर्म अधर्म आकाशके अगुरुलघुगुणकी हानिवृद्धिरूप होना परिणाम है । बहुरि क्रिया क्षेत्रतें अन्य क्षेत्रविर्यै चलनेरूप है । सो दोयप्रकार है, प्रायोगिकी वैस्रसिकी तहां प्रायोगिकी तौ अन्य के प्रयोगते होय है। जैसे बलध आदिक प्रयोगते गाढा आदि चालै । बहुरि वैस्रसिकी विनानिमित्त होय है । जैसें मेघ आदिके वादल स्वयमेव चाले । बहुरि परत्व अपरत्व दोयप्रकार है, क्षेत्रकृत कालकृत । सो इहा कालके उपकारका प्रकरण है । तातें कालकृत लेणें । बहुतकाल लगै ताकू तो परत्व कहिये । अल्पकालका होय ताकू अपरत्व कहिये । ऐसें ए वर्तना आदि कालके उपकार हैं, सो कालके अस्तित्व भी जनावै हैं ।
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