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________________ सर्वार्थ । तब शीतल होय इत्यादि पुद्गलकू पुद्गल उपकार जानना । अथवा इस द्रव्यकर्मकू द्रव्य कर्मका उपकार है, अर सुख | आदि जीवके भी परिणाम हैं ऐसा भी सूचै है । बहुरि इहां सूत्रमें च शब्द है सो जैसे शरीरादिक पुद्गलके जीवा उपकार है । तैसे नेत्र आदि इंद्रिय भी उपकार है, तिनका समुच्चयके अर्थ है । जो आत्माकू एकांतकरि नित्यही कहै हैं तथा अनित्यही कहै हैं तिनके मतमें सुखादि आत्माकै नाहीं बणै हैं, स्याद्वादीकरि सिद्ध होय है॥ वचसिद्धि आगें, पुद्गलका उपकार जीवनिकू दिखाया, अजीवनिके जीव भी परस्पर उपकार करै हैं ताके दिखावनेकू सूत्र कहै हैं- निक टीका पान ॥ परस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥ २१ ॥ २२३ याका अर्थ- जीवनिकै भी परस्पर उपकार है । इहां परस्पर ऐसा शब्द है, सो कर्मव्यतिहार तथा क्रियाव्यतिहारमें वतॆ है । व्यतिहार कहिये वाका वह करै वा वह करै, सो आपलमें जीवनिकै उपग्रह कहिये उपकार वर्ते है। सो कहा सोही कहिये है । स्वामीकै अर चाकरकै परस्पर उपकार है । स्वामी तौ चाकरकू धन आदि देनेकार उपकार करै है । चाकर स्वामीकै हितकी वार्ता कहिकरि अहितका निषेधकार उपकार करै है । बहुरि आचार्यकै अरु शिष्यकै परस्पर उपकार है । आचार्य तौ शिष्या दोऊ लोकके फलका उपदेशको दिखावनेकार तथा तिस उपदेशकथित क्रियाका आचरण करावनेकरि उपकार करै हैं । बहुरि शिष्य आचार्यको अनुकूलप्रवृत्ति उपकार करै है ॥ इहां कोई कहै है, उपकारका तौ अधिकार चल्याही आवै है । सूत्रमें उपग्रहवचन कौन आर्थि है ? ताका समाधान, पहले कहे जे सुख आदिक च्यारि तिनके दिखावनेकू उपग्रहवचन फेरि कह्या है । सुख आदि भी परस्पर जीवनिकै उपकार हैं । इहां परस्पर जीवनिकै उपकार देखने” ऐसा भी अनुमानप्रमाणकार सिद्ध होय है, जो, जीव नानाही है एकही आत्मा नाही ॥ आगें, जो सत्तारूप वस्तु है सो उपकारसहित है, तहां कालद्रव्य भी सत्तास्वरूप है, तातै ताका कहा उपकार है ? | ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं ॥ वर्तनापरिणामक्रियापरत्वापरत्वे च कालस्य ॥ २२ ॥ M याका अर्थ- वर्तना परिणाम क्रिया परत्वापरत्व ए कालके उपकार हैं । इहां वृत्ति धातुकै णिच् प्रत्यय प्रयोजनके Ma हेतु कर्ताविर्षे आवै है । ताके कर्मविर्षे तथा भावविर्षे युट् प्रत्ययतें स्त्रीलिंगवि वर्तना ऐसा शब्द हो है । तहां धर्म ||
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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