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समाधान, जो, ऐसें नाहीं । ए परोक्ष हैं, सो सर्वही मतमें प्रत्यक्ष तथा परोक्ष पदार्थ मानिये है । प्रत्यक्ष न देखनेतें । इनका अभाव मानिये, तो अन्यमतमें जे परोक्ष वस्तु मानिये हैं, तिनका भी अभाव ठहरैगा । बहुरि हमारे स्याद्वादीनिके मतमें सर्वज्ञ इनकू प्रत्यक्ष भी देखे हैं, ऐसे कया है, तातें ए प्रत्यक्ष भी हैं, तिनके उपदेशनै परोक्ष ज्ञान भी
| माने हैं। तातें ये हेतु हम प्रति असिद्ध हैं । सार्थ
। आगै पूछे हैं, जो, धर्म अधर्म द्रव्य अतीन्द्रिय हैं, तिनका उपकारके संबंधकरि अस्तित्व निश्चय कीजिये तैसेही ताकै का टीका लगताही कह्या जो आकाशद्रव्य सोही अतीन्द्रिय है । ताके जाननेविर्षे कहा उपकार है ? ऐसे पूछै उत्तरसूत्र कहें है
वच
विवि
निक
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॥ आकाशस्यावगाहः॥१८॥ याका अर्थ- आकाशद्रव्यका सर्वद्रव्यनिषं अवगाह देना उपकार है । इहां उपकारशब्दकी अनुवृत्ति लेणी । जीवपुद्गल आदि जे द्रव्य अवगाह करनेवाले हैं, तिनकू अवकाश देना आकाशका उपकार है । इहां तर्क, जो, जीवपुद्गल क्रियावान हैं, ते अवगाह करनेवाले हैं, तिनकू अवकाश देना युक्त है । बहुरि धर्मास्तिकाय आदिक तौ निष्क्रिय हैं, बहुरि नित्यसंबंधरूप हैं, तिनकों कैसे अवगाह दे है ? ताका समाधान, जो, इहां उपचारतें अवकाश देना प्रसिद्ध है, तैसें आकाशकू सर्वगत कहिये है, आकाश तौ नित्य निष्क्रिय है, कहूं जाय नाहीं तो सर्वगत उपचारतें कहिये है तैसैं इहां भी जानना । इहां तर्क, जो, आकाशका अवकाश देना स्वभाव है । तौ वज्र आदिकरि पाषाण आदिका तथा भीत आदिकरि गऊ आदिका व्याघात कहिये । रुकना नाहीं चाहिये बहुरि व्याघात देखियेही है । तातै आकाशकै अवकाश देना नाहीं ठहया । ताका समाधान, जो, यहु दोष इहां नाहीं है। वज्रलोष्टादिक स्थूल हैं तिनकै परस्पर व्याघात है । यातें आकाशका अवकाश देना नाहीं बाध्या जाय है । तहां अवगाह करनेवालेहीकै व्याघात है, तेही परस्पर अवगाहन करै है, तातें यह आकाशका दोष नाहीं । बहुरि जे सूक्ष्मपुद्गल हैं ते भी परस्पर अवकाशदान करै हैं ॥
बहार इहां प्रश्न, जो, ऐसें है सूक्ष्मपुद्गल भी परस्पर अवकाश दे हैं, तो अवकाश देना आकाशका असाधारण लक्षण न ठहय । ताका समाधान, जो, ऐसें नाहीं है। सर्वपदार्थनिकं साधारण युगपत् अवकाश देना आकाशका असाधारण लक्षण है, यात दोष नाहीं । बहरि कहै है, जो, लोकाकाशविर्षे अवगाह करनेवाले नाही, तार्तं तहां अवकाशदान भी नाहीं । ताका समाधान, जो, द्रव्यका स्वभाव है, ताका त्याग द्रव्य करै नाहीं । इहां क्रियावान जीवपुद्गल