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सो स्थिति है । ए दोऊ उपकार धर्म अधर्म द्रव्यके हैं । धर्मद्रव्यका तौ गति उपग्रह है । अधर्मद्रव्यका स्थिति उपग्रह । ।। है । इहां कोई पूछे है, जो, ऐसे है तो उपकारशब्दकै द्विवचन चाहिये है। ताकू काहये यह दोष नाहीं है । सामान्यकरि १ कह्या है, तातें पाई संख्याकू शब्द छोडे नाही, तातें एकवचनही है । जैसें साधुपुरुषका तप करना शास्त्र पढना कार्य है,
इहां दोऊ कार्यकू सामान्यकरि एक कहिये तैसें इहां भी जानना । इहां ऐसा अर्थ भया, गमन करते जे जीव पुद्गल । द्रव्य तिनकू गमनका उपकारविर्षे साधारण आश्रय धर्मद्रव्य है, जैसे मत्स्यकू गमनविर्षे जल है तैसें । बहुरि तैसेंही निका । तिष्ठता जो जीव पुद्गल द्रव्य तिनकू स्थिति उपकारवि अधर्मद्रव्य साधारण आश्रय है, जैसे घोडा आदिकू तिष्ठतें पृथिवी है तैसें ॥
इहां कोई तर्क करै- जो, उपकार शब्द तौ कह्याही, सूत्रमें उपग्रहवचन निष्प्रयोजन है। ताका समाधान, जो, इहां धर्मद्रव्यका उपकार गतिसहकारी अधर्मद्रव्यका स्थितिसहकारी ऐसा यथासंख्य है, सो उपग्रहवचन न कहिये तो जीवनिकू धर्मद्रव्य गतिसहकारी पुद्गलनिकू अधर्मद्रव्य स्थितिसहकारी है । ऐसें इहां भी यथासंख्यकी प्राप्ति आवै । तातै ताके निषेधके अर्थि उपग्रहवचन है। तहां उपकार तो सामान्यवचन भया । ताका विशेप उपग्रहशब्द भया । तब ऐसे भी जानिये, जो, धर्म अधर्मके गति स्थिति करावनेका उपकार तौ नाही है, अर उपग्रहमात्र है । इहां उपग्रह अरु उपकार ए दोऊ शब्द कर्मसाधन हैं । तहां उपकार तो सामान्यवचन है अर उपग्रह विशेषवचन है । तहां फेरि तर्क, जो, गति स्थिति उपकार धर्म अधर्म द्रव्यका कह्या, सो आकाश सर्वगत है, सो याहीका क्यों न कह्या ? ताकू कहिये, यह अयुक्त है । आकाशका सर्वद्रव्यनिकू अवगाह देना उपकार है । जो एक आकाशहीके दोय उपकार कल्पिये तो लोकअलोकके विभागका अभाव होय ॥
बहुरि कहै, जो, भूमि, जल आदि पदार्थही गतिस्थिति आदि उपकारविर्षे समर्थ हैं। धर्म अधर्म द्रव्यनितें कहा । प्रयोजन है ? तहां कहिये हैं, भूमि जल आदिक तो कोई कोई द्रव्यकू एक एक प्रयोजनवि अनुक्रमतें समर्थ हैं । बहुरि ।
धर्म अधर्म द्रव्य है ते सर्व जीवपुद्गलकू एककाल गति स्थिति साधारण आश्रय हैं । बहुरि एक कार्यकू अनेक कारण साधै है, तहा दोप नाहीं । बहुरि तर्क, जो, धर्म अधर्म द्रव्य दोऊ समानबल हैं सो धर्मद्रव्य तौ गति करावै तिसही काल अधर्मद्रव्य गतिस्थिति करावै, तब विरोध भया, दोऊ एककाल होय नाहीं । ताका समाधान, जो, ए प्रेरकनिमित्त नाही, बलाधाननिमित्त हैं । जीवपुद्गल गमन स्थिति करे तो निमित्त होय, न करै तौ नाहीं होय ॥
बहुरि तर्क, जो, धर्म अधर्म द्रव्यकी उपलब्धि नाहीं, कोऊके देखनेमे आये नाहीं, ताते ए नाही हो हैं । ताका