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सर्वार्थ
पनि का
टीका
पान
कहिये, तैसें परमाणुके प्रदेशमात्रपणातै प्रदेशके भेदका अभाव जानना । जातें परमाणुतें अन्य छोटा परमाणु नाहीं । यातें छोटा और होय तो वह प्रदेशका भेद करै । इहां कोई कहै, परमाणु अप्रदेश कहिये है, तातें याकै एकप्रदेश भी नाहीं । ताकू कहिये, एकप्रदेश भी न होय तौ द्रव्य भी न ठहरै । तातें द्रव्य मानिये तो एकप्रदेश भी मानना योग्य है । विनाप्रदेश अवस्तु होय है । इहांताई अजीव तथा जीव ये पांच अस्तिकाय कहे तिनके प्रधानपणांकार
वचसिदि द्रव्यत्व नित्यत्व अवस्थितत्व अरूपत्व एकद्रव्यत्व निःक्रियत्व स्वभाव कहे । गौणभावकरि पर्यायत्व अनित्यत्व अनवस्थितत्व
सरूपत्व अनेकद्रव्यत्व स्वभाव भी है। ते विना कहे भी गम्यमान जानने । ऐसें द्रव्याथिक पार्थिक नयकार सिद्ध होय है ॥
२१४ आगें कहे जे धर्मादिकद्रव्य, तिनकी प्रदेशनिका परिमाण तो कह्या । अब तिनका आधार जाननेकुं सूत्र कहै हैं
॥ लोकाकाशेऽवगाहः ॥ १२॥ याका अर्थ- ए कहे जे धर्म आदि द्रव्य तिनका लोकाकाशविपें अवगाह है बाहिर नाहीं है । इहां कोई पूछ है, जो, धर्म आदि द्रव्यनिका लोकाकाश आधार है, तो आकशका कहा आधार है ? ताका उत्तर, जो, आकाश आपहीके
याका अन्य आधार नाहीं। फेरि पूछे है, जो, आकाश आपहीकै आधार है तौ धर्मादिक भी आपहीकै आधार क्यों न कहाँ ? । जो धर्मादिककै अन्य आधार है तो आकाशकै भी अन्य आधार कल्पा चाहिये । तब अनवस्थादोप आवेगा । ताकू कहिये है, 0 | यह दोप नाहीं । जाते आकाश सर्वते बडा है, यात अधिक परिमाण और नाही, जाकै आधार आकाश कहिये। सर्वतरफ
आकाश अनंत है । तातै धर्मादिकका आधार आकाश कहिये है । सो यह व्यवहारनयकरि जानना । बहुरि एवंभूतनयकी अपेक्षा सर्वही द्रव्य अपने अपने आधार कहिये । जैसे कोई काहूकू पूछे, तू कहां बैठा है ? तब वह कहै, मैं मेरा आत्मावि बैठा हूं, ऐसा एवंभूतनयका वचन है। तातें धर्म आदि द्रव्य लोकाकाश वाहिर नाहीं हैं। एतावन्मात्र इहां आधारआधेयभाव कहनेका फल है ।
इहां कोई तर्क करै है, जो, पहली पीठे होय तिनकै आधार आधेय भाव देखिये है । जैसे कुंडावि ठौर है । सो ऐसे आकाश पहली होय पीछै तामें धर्म आदिक द्रव्य धरे होय तव आधाराधेयभाव कहिये । सो ऐसे है नाहीं । ताते व्यवहारनयकार भी आधारआधेयभाव कहना युक्त नाहीं । ताका समाधान, यह दोप नाहीं । एककाल होय तिनके भी आधाराधेयभाव देखिये है । जैसे घटवि रूप आदिक हैं, शरीरवि हस्त आदि हैं, ऐसे लोकवि कहिये है । बहुरि । पूछे है, लोक कहा ? जामै धर्म आदिका अवगाह कहिये । तहां कहिये, धर्म आदि द्रव्य जामें देखिए सो लोक है ।