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सर्वार्थ
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बहुरि एक क्षेत्रमें गऊ आदि तिष्ठै पीछे अन्यक्षेत्रमें जाय तब ऐसा कहिये है, जो, गऊ इहीतें अन्यक्षेत्रमें गया, सो यह । न बणै । जो आकाश सर्वथा एक निरंशही होय तौ, अन्यक्षेत्र कैसै कहिये ? कल्पनामात्रमें ऐसी अर्थक्रिया होय नाही कल्पित अग्नितें पाक आदि होय नाहीं ऐसा जानना ॥ आगें कहै हैं, अमूर्तिक द्रव्यनिका प्रदेशनिका परिमाण कह्या, अब मूर्तिकद्रव्यका प्रदेशनिका परिमाण जान्या चाहिये,
वचसिद्धि ताके जनावनेकू सूत्र कहै हैं
निका ॥ संख्येयासंख्येयाश्च पुद्गलानाम् ॥१०॥ याका अर्थ- पुद्गल द्रव्य हैं तिनके प्रदेश संख्यात भी हैं, असंख्यात भी हैं, चकारतें अनंत भी हैं। इहां चशब्दतें पहले सूत्रमें अनतंशब्द है सो लेणां । तहां केई पुद्गलद्रव्य तौ दोय आदि अणुके स्कंध हैं, ते तौ संख्यातप्रदेशी हैं। केई पुद्गल असंख्यातप्रदेशी स्कंध हैं। केई स्कंध अनंतप्रदेशी हैं। अनंतानंतके स्कंध अनंत सामान्य कहनेमें गर्भित है । जाते अनंतके तीनि भेदकरि कहे हैं । परीतानंत, युक्तानंत, अनंतानंत ऐसें । इहां प्रश्न, जो, लोक तौ असंख्यातप्रदेशी है, सो अनंत प्रदेशका स्कंध तामैं कैसे रहै ? ताका समाधान, जो, यह दोष इहां नाहीं । सूक्ष्मपरिणमन परमाणुनिका तथा अवगाहन शक्तिके योगते एक एक आकाशप्रदेशविर्षे अनंतानंत परमाणु तिष्ठे हैं। आकाशके प्रदेशनिविर्षे ऐसी अवगाहनशक्ति है । तथा परमाणुनिमें ऐसीही सूक्ष्मपरिमाण शक्ति है । ताते यामै विरोध नाहीं। अल्प आधारविर्षे बहुतका अवस्थान देखिये है । जैसे एक चंपाकी कलीविर्षे तिष्ठते सुगंधपरमाणु सूक्ष्मपरिणामतें संकुचे तिष्ठै हैं । बहुरि
ते सुगंधपरमाणु फैलें तब सर्व दिशामें व्यापक होय, तैसें इहां भी जानना । सूक्ष्मपरिणामतें एक प्रदेशमें तिष्ठं परमाणु Mबादर परिणमें तब बहुतप्रदेशमें तिष्ठं ॥
आगें, पहले सूत्र में ऐसा कह्या, जो, पुद्गलनिके बहुप्रदेश हैं । तहां सामान्यपुद्गल कहनेमें परमाणुको भी बहुप्रदेशका प्रसंग आवै है । ताके निषेधके अर्थि सूत्र कहें हैं
॥ नाणोः ॥ ११ ॥ याका अर्थ- परमाणुके बहु प्रदेश नाही हैं । इहां अणुके प्रदेश नाहीं हैं । ऐसें वाक्यशेष लेना । इहां पूछे, जो, परामाणु प्रदेशTo मात्र काहेत नाहीं । ताका उत्तर, जो, परमाणु एकप्रदेशमात्र हैं । जैसे आकाशके एकप्रदेशके भेदका अभाव है, तातें अप्रदेशपणां ।।