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सार्थ
वच
टीका
का नाहीं है । ए धर्म आदि द्रव्य जीवपुद्गलकू गति आदिके निमित्त है, ते वलाधान निमित्त हैं । जैसें नेत्र पुरुपके रूप २
देखनेवि निमित्त हैं । जो पुरुपका चित्त अन्यपदार्थोमें लगि रह्या होय, तौ रूपकू न देखें । जब पुरुपका चित्त तिस १ मप देखनेकी तरफ आवै तव नेत्र भी निमित्त होय हैं । तैसें इहां भी है । जब जीवपुद्गल गमन करै तब धर्मद्रव्य निमित्त है । जब बैठे तब अधर्म द्रव्य निमित्त है । जब अवगाहै तब आकाश निमित्त है । प्रेरकनिमित्त नाहीं है ।।। वहुरि सूत्रमें चन्द है, सो पहले सूत्रमें कहे तिन तीनिही द्रव्यके संबंधके अर्थि है । जीवपुद्गल क्रियावान हैं। निक
इहां कोई अन्यमती कहै है, जो, आत्मा सर्वगत है, याते क्रियारहित है। क्रियाके कारण जे संयोग प्रयत्न गुण | पान अ५२ तिनका समवायतें परवि क्रियाका कारण है। ताकू कहिये, जो, द्रव्य परके क्रियाका कारण होय, सो आप भी २११
क्रियावानही होय है । जैसे पवन आप चले है, सोही परकू चलावै है । तैसें आत्मा भी क्रियाकी शक्तियुक्त है। जब वीयीतरायज्ञानावरणकर्मका क्षय क्षयोपशम अंगोपांग विहायोगति नामकर्मका उदययुक्त होय, तव शक्ति प्रगट होय गमनक्रियारूप प्रवर्ते है । ऐसेंही आत्माके हस्तादि चलावनेकी क्रिया निमित्त संयोग प्रयत्नयुक्त होय है। निक्रिय आत्माके संयोग प्रयत्न ए दोय गुणके संबंधहीत हस्तादिकरि चलावतां बणे नाही । इहां दृष्टान्त, जैसें दोऊ अंधे मिले तव देखना बणै नाही, तैसैं आत्माकी निःक्रियताके गुण भी निःक्रिय दोऊ निःक्रिय मिले परविर्षे क्रिया कैसे करावै ?
इहां पूछै, जो, धर्मादिक द्रव्य क्रियारहित हैं, जे जीवपुद्गलको क्रियाके कारण कैसे कही हौ ? ताका समाधान, जो, धर्मादिक प्रेरकनिमित्त नाही कहैं है बलाधाननिमित्त मानै है । बहुरि आत्माकू सर्वगत कह्या, सो सर्वथा सर्वगत भी नाही है । संकोचविस्तारशक्तिकरि असर्वगत भी है। ऐसे इत्यादि युक्तिकरि आत्मा कथंचित् क्रियावान् है । बहुरि पुद्गल क्रियावान् प्रसिद्धही है। धर्म अधर्म आकाश ए क्रियारहित हैं। बहुरि आगें कहियेगा कालद्रव्य सो भी क्रियारहित है॥
आगें, अजीवकाया ऐसे सूत्रवि पहले कह्या तहां कायशब्दकरि प्रदेशनिका अस्तित्वमात्र तो जान्या । परंतु प्रदेश एते हैं ऐसा न जान्या । सो प्रदेशनिकी संख्याके निश्चय करनेकू सूत्र कहै हैं
॥ असंख्येयाः प्रदेशा धर्माधर्मैकजीवानाम् ॥ ८॥ ६ याका अर्थ- धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य एकजीवद्रव्य इनके प्रत्येक असंख्यात प्रदेश हैं । असंख्यात गणना मानके तीनि ।
। भेद हैं, जघन्य मध्यम उत्कृष्ट । तिनमें इहां मध्यका असंख्यात लेना । बहुरि जितने आकाशक्षेत्रकू अविभागी पुद्गलTo परमाणु रोके, तितने आकाशकू एक प्रदेश कहिये । तहां धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य एकजीवद्रव्य ए तीनि द्रव्य वरावरी l