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________________ अनर्थक होता । ताका समाधान, इहां द्रव्यकी अपेक्षा एकत्व कहना हैं, तातें द्रव्यका ग्रहण है। क्षेत्रभावकी अपेक्षा असंख्यात अनंत भेद हैं, तातें जीवपुद्गलकी ज्यों इन तीनूं द्रव्यनिकै बहुपणा नाही है। ऐसा अर्थ सूत्रकरि प्रसिद्ध होय है। आगें अधिकाररूप किये जे धर्म अधर्म आकाश ए तीनूं द्रव्य, तिनका विशेप जानने *000000000 सार्य- सूत्र कहैं हैं वच निका ॥ निष्क्रियाणि च ॥७॥ पान याका- अर्थ ए तीनूं द्रव्य क्रियासू रहित है । वाह्याभ्यंतर इन दोऊ निमित्तके वश द्रव्यके क्षेत्रतें अन्य- II ૨૨૦ क्षेत्रमें गमन करनेका कारण उपज्या जो अवस्थाविशेषरूप पर्याय, सो क्रिया है। इहां दोऊ निमित्त कहे । तहां अभ्यंतर तो क्रियापरिणाम शक्तिकरि युक्त होय है, बाह्य परद्रव्यकी प्रेरणा तथा भिडना आदि होय ते दोऊ मित्त हैं । सो निमित्त कहनेते द्रव्यका स्वभावका निषेध है। जो क्रियास्वभावही होय तो निरंतर क्रियाही ठहरै ।। ताते स्वभाव न कहना । बहुरि क्रियाकू द्रव्यहीकी अवस्था कही । तातें ऐसा जानना, जो, क्रिया गुणते जुदी नाही । बहुरि देशान्तरकी प्राप्तिकू कारण कही सो यातें गुणरूप न जाननी, तिस परिस्पंदरूप क्रियाते रहित होय ते निष्क्रिय कहिये । इहां तर्क, जो धर्मादिक द्रव्य क्रियारहित हैं, इनकै उत्पाद न चाहिये, जातै परिस्पंदरूप क्रियापूर्वकही घटादिककै उत्पाद देखिये है, बहुरि उत्पाद न होय, तव नाश भी न होय, तव सर्व द्रव्यनिकें उत्पाद व्यय ध्रौव्य इन तिनें रूपनिकी कल्पना न ठहरै । ताका समाधान, जो, ऐसें नाहीं हैं। उत्पादादिक क्रियानिमित्त भये तिन सिवाय अन्यप्रकार भी होय है । तहां उत्पाद दोयप्रकार है स्वनिमित्त परनिमित्त । तहां अगुरुलघुगुणके परिणमनतै उत्पाद होय, सो तौ स्वभावान्त कहिये । कैसे हैं अगुरुलघुगुण ? परिणामकार अनंत हैं । बहुरि पदस्थानपतित हानिवृद्धिकार रहित है । बहुरि आगमप्रमाणकरि मानें हैं । बहुरि ऐसेही व्यय हो है । बहुरि परनिमित्त उत्पादव्यय है । सो गऊ घोडा प्रतिदिनकू गतिस्थितिअवगाहळू ए द्रव्यनिमित्त हैं । अर शिक्षणवि तिन गति आदिका भेद हैं । तातै तिनके हेतुके भी। भिन्नपणा मानिये । ऐसा परनिमित्त उत्पाद व्यय मानिये हैं ॥ वा बहरि इहां तर्क, जो, धर्म आदि द्रव्य क्रियारहित है, तो जीवपुद्गलकं गति आदिके कारण नाही वणेंगे । जल आदि क्रियावान् हैं। तेही मत्स्य आदिवं गति आदिके निमित्त देखिये हैं। ताका समाधान, जो, यह दोप इहां
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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