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सर्वार्थ
अनेक धर्म हैं सो द्रव्यपणाकरि सदा विद्यमान हैं, तातें यह तौ नित्यशब्दका अर्थ है । बहुरि द्रव्यवि विशेष लक्षण है, ताक़े कबहू छोडै नाही । चेतनतें अचेतन होय नाही, अमूर्तिकतें मूर्तिक होय नाही, तातें द्रव्यनिका संख्याकी व्यवस्था है, यह व्यवस्थितका अर्थ है । इस सूत्र" जे अन्यमती वस्तुकू एकान्तकरि क्षणिकही माने है तथा सत्तामात्र एकही वस्त माने हैं, तिनका निराकरण भया । बहुरि कोई अन्यमती कहै हैं, जो, द्रव्य सर्वगत होय सो अमूर्तिक
वचकहिये, ताका निराकरण हैं । जातें मूर्तिकका लक्षण रूपादिक जामें पाईये सो है । सो ऐसा मूर्तिकपणा जामैं न होय सो अमूर्तिक है, ऐसा जानना ॥
आगें नित्यावस्थितान्यरूपाणि यह सूत्र सामान्यकार कह्या, तामैं पुद्गलकै भी अरूपीपणाकी प्राप्ति आवै है, ताका || निषेधके अर्थि विशेषसूत्र कहै हैं
निका
सिदि
पान २०९
अ.५
॥ रूपिणः पुद्गलाः ॥ ५॥ याका अर्थ - पुद्गल हैं ते रूपी हैं। रूपशब्दके अनेक अर्थ हैं । तथापि इहां रूपादिका आकाररूप मूर्तिका अर्थ है । सो रूप जाकै होय सो रूपी कहिये, ऐसें अर्थतें मूर्तिमान रूपी भया । अथवा रूप गुणकं कहिये, सो जामैं RI रूपगुण होय सो रूपी कहिये, ऐसैं रूपते अविनाभावी रस गंध स्पर्श भी गर्भित भये । बहुरि पुद्गल ऐसा बहुवचन
है, सो, पुद्गलके भेद बहुत हैं, स्कंध परमाणु इत्यादि आगे कहेंगे; ताके जनावनेकू है । जो सांख्यमती प्रकृति अरूपी एक माने है तैसैं मानिये तो समस्तलोकमें मूर्तिक कार्य देखिये है, तिनका विरोध आवै ॥ ___ आगें पूछे है कि, धर्मादिक द्रव्य हैं, ते पुद्गलकी ज्यों भिन्न अनेक हैं कि नाही ? ऐसे पूछे सूत्र कहैं हैं ।
॥ आ आकाशादेकद्रव्याणि ॥ ६ ॥ याका अर्थ- धर्म अधर्म आकाश ए एक एक द्रव्य हैं । इहां आङ् उपसर्ग है सो आभिविधि अर्थमें है । तातें सूत्रमें धर्म अधर्म आकाश कहे हैं, सो आकाशताई तीनूं द्रव्य ग्रहण करने । बहुरि एकशब्द है सो द्रव्यका विशेषण है, ताते एकद्रव्य है ऐसा कहिये । इहां तर्क, जो, ऐसा है तो द्रव्यशब्दकै बहुवचन अयुक्त है । ताका समाधान, जो, धर्म अधर्म आकाश ए तीनि हैं ताकी अपेक्षा बहुवचन है । एकशब्दकै अनेक अर्थकी प्रतीति उपजाबनेकी सामर्थ्य है। इहां फेरि तर्क करै हैं, जो, एक एक ऐसा शब्द क्यों न कह्या ? तातें सूत्रमें अक्षर थोरे आवते अर द्रव्यका ग्रहण