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निका
टीका I
मर्तिकसाधनविर्षे हेतुकै व्यभिचार भया । ताका समाधान, जो, ऐसें नाहीं है। शब्द भी पुद्गल जघन्यही है, ताते मूर्तिकही है । बहुरि अन्यवादी तर्क करै है, जो, एकपरमाणुनिका रूपादिसहित कार्य देखिये है, तातें रूपादिमान् कहिये है, तैसें वायुमनका रूपादिसहित कार्य दीखें नाही । ताका समाधान, जो, वायुमनकै भी रूपादिकार्यकी प्राप्ति वणे है ।
| जातें परमाणुमात्र सर्वहीकै रूपादिकार्यसहितपणा है । ऐसा तो नाही । जो कोई पृथिवीतें उपजे जातिविशेप लिये परमाणु 1. For है ते न्यारेही हैं । सर्वही परमाणुनिकी पलटनी दीखै है । पृथिवीते जल होय है, जलतें पृथिवी होय है, अग्नितें पृथिवी है।
होय है, पृथिवीकाष्ठादिकते अग्नि होय है, ऐसे परस्पर जातिका संकर देखिये है । तातें वायुमनके न्यारेही परमाणु पान अ. ५१ नाही, सर्व पुदगलद्रव्यके विकार हैं ।
२०८ बहुरि दिशाका आकाशवि अन्तर्भाव है। सूर्यके उदयादिककी अपेक्षातें आकाशप्रदेशनिविर्षे पूर्वादिकका व्यवहार है। ६ इहां बौद्धमती कहै है, जो, चैतन्य क्षणिक है, ताका संतान कल्पित है, ताकू जीव कहिये है । बहुरि चार्वाकमती कहै
है, पृथिवी आदिके समुदायते चैतन्य उपजै है, ताकू जीव कहिये है, इत्यादि कल्पना करै हैं । तिनका निराकरण जीवद्रव्य कहनेते भया । जाते द्रव्य है सो गुणपर्यायसहित है। तहां सत्तें अन्वयरूप गुण है, व्यतिरेकरूप पर्याय है, दोऊ- ३
सहित द्रव्य है, ऐसें जानना ॥ __आगें द्रव्य कहे तिनका विशेष जाननेकू सूत्र कहें हैं
॥ नित्यावस्थितान्यरूपाणि ॥ ४ ॥ याका अर्थ- कहे जे द्रव्य ते नित्य हैं, अवस्थित है, अरूपी हैं । इहां नित्य तौ ध्रुवकू कहिये । जातें नि ऐसा धातुका ध्रुव अर्थवि नित्यशब्द निपजाया है । ए धर्मादिक द्रव्य हैं ते गतिहेतुत्व आदि विशेपलक्षणतें तथा अस्तित्व आदि सामान्यलक्षणते द्रव्यार्थिकनयके आदेशकार कोईही कालविर्षे व्यय कहिये नाशस्वरूप न होय हैं, ताते नित्य हैं । नित्यका लक्षण आर्गे सूत्रमें तद्भावाव्ययं नित्यं ऐसे कहसी। बहुरि ये द्रव्य एते हैं ऐसी संख्या नाहीं छोडे हैं, तातें अवस्थित कहे धर्मादिक छह द्रव्य हैं ऐसी संख्याकू नाहीं उलंधै हैं । इहां भी सामान्यविशेपलक्षणरूप द्रव्यार्थिकनय लगावणी । बहुरि जिनके रूप विद्यमान नाही, ते अरूपी कहिये । इहां रूपका निषेधते ताके सहचारी जे रस गंध स्पर्श तिनका निपेध जानना तातै ए द्रव्य अरूपी कहिये अमूर्तिक हैं ।
इहां प्रश्न- जो, नित्य अरु अवस्थित इन शब्दनिका अर्थका विशेप न जान्या । तहां कहिये हैं- जो, द्रव्यविर्षे