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वच
सर्वार्थ
भ.५
अनुवृत्ति चाहिये, धर्मादिककै पहलै सूत्रमें पुरुपलिंगका बहुवचन है, इहां नपुंसकलिंग कैसे १ ताकू कहिये, इहां द्रव्यशब्द है सो नपुंसकलिंगही है । सो अपने लिंगळू न छोडै है, तातै नपुंसकलिंगही युक्त है । ऐसें धर्मादिक द्रव्य हैं । इहां कोई कहै है, द्रव्य गुण पर्याय ए तीनि कहे ते जुदे जुदे हैं । सो ऐसें नाहीं । इनकै प्रदेशभेद तौ नाहीं हैं । अर' संज्ञा संख्या लक्षण प्रयोजनादिककरि भेद भी कहिये हैं ।
आगें कहे है कि, धर्मादिककै लगताही द्रव्याणि ऐसा सूत्र कह्या तातै ए च्यारिही द्रव्य हैं, ऐसा प्रसंग होते अन्य निका टीका | भी द्रव्य हैं, ऐसा सूत्र कहे हैं।
पान
२०७ ॥ जीवाश्च ॥३॥ याका अर्थ- जीव हैं ते द्रव्य हैं। तहां जीवशब्दका अर्थ तो पहले कह आये सो जानना । बहुरि बहुवचन | है सो कहे जे जीवके भेद ताकू जाननेकू है । बहुरि चशब्द है सो द्रव्यसंज्ञाकू ग्रहण करावे है । तातें ऐसा अर्थ । होय है, जो, जीव हैं ते भी द्रव्य हैं, ऐसे ए आगे कहेंगे जो कालद्रव्य ताकरि सहित छह द्रव्य हैं। बहुरि द्रव्यका
लक्षण भी · गुणपर्यायवत् द्रव्यं । ऐसा कहेंगे तिस लक्षणके संबंधते धर्म अधर्म आकाश जीव पुद्गल काल इन
छहुनिकू द्रव्य नाम कहिये हैं । बहुरि इनकी गणतीते कछू अर्थ नाही बहुरि गणती है । सो भी नियमके अर्थि है,१ । द्रव्य छहही हैं । अन्यवादीनिकरि कल्पे जे पृथ्वी आदिक नव द्रव्य तिनका निपेध है । जाते पृथ्वी अप तेज वायु मन ते ती रूप रस गंध स्पर्शवान् हैं तातै पुद्गलद्रव्यवि4 गर्भित हैं ॥
इहां कहै, वायुमन रूपादिका योग नाही दीखै है । ताकू कहिये, वायु तो स्पर्शवान् है सो रूपादिकतै अविनाभावी है । जहां स्पर्श है तहां रूपादिक होयही होय, यह नियम है । जैसे घट आदि है तैसें है । इहां कहै, नेत्रनिकरि तौ वायुरूप दीखै नाही । ताकू कहिये, ऐसें तौ परमाणु भी नेत्रनिकरि नाही दीखै, ताकै भी स्पर्शादिकका अभाव ठहरै है । ऐसेंही जल भी स्पर्शवान् है, तातें पृथिवीकी ज्यौं गंधवान् अवश्य हैं । तथा अग्नि भी स्पर्शवान् है, तातें रसगंधवान् है । बहुरि मन है सो दोयप्रकार है द्रव्यमन भावमन । तहां भावमन तो ज्ञान है । सो जीवका गुण है, सो आत्मद्रव्यविर्षे गर्भित भया । बहुरि द्रव्यमन है सो रूपादिकके योगते पुद्गलद्रव्यका विकार है, तातें यह ज्ञानोपयोगकू निमित्त है, तातें नेत्र इन्द्रियकी ज्यौं रूपआदिसहितही कहिये ॥ ___ इहाँ तर्क, जो, शब्द मूर्तिक है, सो ज्ञान• कारण है, तैसें मन भी रूपादिरहित अमूर्तिकज्ञानकू कारण है, तातै ।
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