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| पान
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बहुरि कोई पूछे है, आगे सूत्र कहेंगे तामें कह्या है, जो, धर्म अधर्म एकजीव इनके असंख्यातप्रदेश है, तिस सूत्रतें प्रदेशबहुत्व जनाये हैं, इस सूत्रमें काहेको कहैं ? ताकू कहिये, यह तो सत्य है । परंतु तहां तो प्रदेशनिकी संख्याका नियम जनाया है, जो, इनके प्रदेश असंख्यातही हैं, संख्यात तथा अनंत नाहीं हैं । अर इहां बहुत्व सामान्य जनाव
नेकू कायशब्द है । पहले बहुत्व कहे, ताकी संख्या तहां जनाई है । अथवा कालद्रव्यके प्रदेशप्रचयका अभाव जनावनेकू 10 इहां कायशब्द है। कालद्रव्य आगें कहसी सो बहुप्रदेशी नाहीं है । जैसें पुद्गलपरमाणु एकदेशमात्र है, दूसरा आदि प्रदेश 18 जाके नाहीं है, ताते ताळू अप्रदेशी कहिये है, तैसे कालका परमाणु भी एकप्रदेशमात्र है, तातें ता• अप्रदेशी कहिये है ॥ ___बहुरि तिन धर्म आदि द्रव्यनिकी अजीव ऐसी सामान्यसंज्ञा है, सो यह संज्ञा जीवलक्षणकरि रहितपणांतें प्रवर्ते है । बहुरि धर्म अधर्म आकाश पुद्गल ऐसी विशेष संज्ञा है सो इनमें जैसा विशेषणगुण है ताका संकेत अनादिते सर्वज्ञपुरुषकृत है तिस संकेतः प्रवर्ती है, वह संज्ञा सार्थिक है । समस्त जातें गमन करते जे जीवपुद्गल तिनकू काल गमनसहकारी है । ऐसें लक्षणकू धारणेते धर्म ऐसी संज्ञा है । बहार इसते विपरीत जो जीवपुद्गलकू स्थानसहकारी एककाल है, तातें धर्मके लक्षण नाही धारणेते अधर्म है । बहुरि समस्तद्रव्य जामें एककालविर्षे अवकाश पावै तथा आप अवकाशरूप है, तातें आकाश ऐसी संज्ञा है । बहुरि तीनि कालविर्षे पूरै तथा गलै ते पुद्गल हैं । ऐसें सार्थिक भी नाम बणै है । बहुरि अन्यवादी सांख्य कहै हैं, अजीव एक प्रधानही है । ताकू प्रकृतिहू कहै है । सो यहू प्रमाणबाधित
है । तातें अजीव भिन्नलक्षणस्वरूप जुदे जुदे बहुत बणें हैं । एकहीकी सिद्धि नाही । बहुरि जे पुरुष अद्वैत मान है, 18 ते अजीव तत्त्वही न कहै है । तिनका मत तो प्रत्यक्ष विरुद्धही हैं । अजीव पदार्थ पुद्गलादि नाना प्रत्यक्षसिद्ध है ।
बहुरि तिनकू अनित्य देखि अवस्तु बतावै तौ जीव भी अनित्यही दीखें । सो भी अवस्तु ठहया तब सर्वका लोप भया । ____ इहां अदृष्टकी कल्पनाकार एक ब्रह्म बतावै तौ जीवपदार्थयिना ताळू देखेगा कौंन ? देखनेवाला जो अवस्तु है, तो अवस्तुका देख्या सत्य कैसे ? बहुरि ताकू आगमके कहेमात्रही मानें, तो आगम भी अवस्तु, आगमका माननेवाला भी | अवस्तु । तब अदृष्टकल्पनाही भई । इत्यादि युक्तितें पुरुषके द्वैतकी सिद्धि नाही है । बहुरि पृथ्वी अप तेज वायु मन दिशा काल आकाश ऐसे अजीव पदार्थके भेद नैयायिक वैशेषिक मानें हैं । ते भी प्रमाणबाधित हैं । जाते पृथ्वी अप तेज वायु मन ए तौ पुद्गलद्रव्यही हैं । जुदी जाति नाही । भेदसंघातकरि स्कंधरूप मिलै खुले है । बहुरि दिशा है सो आकाशहीका भेद है जुदा द्रव्य नाही । आकाशके प्रदेशनिकी पंक्तिविर्षे सूर्यके उदयादिके वशतें पूर्वआदि दिशा
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