________________
परमपूज्य चारित्रचक्रवर्ती आचार्यवर्य श्री १०८ शांतिसागर महाराजके आदेशसे श्री दिगंबर जैन जिनवाणी जीर्णोद्धारक संस्थाकी तरफसे ज्ञानदानके लिय छपी हुई
सर्वार्थ
--- श्रीवीतरागाय नमः .. raep वीर संवत् २४८१ ]
॥ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ [ प्रथ प्रकाशन समिति, फलटण अथ तत्त्वार्थसूत्रकी सर्वार्थसिद्धिटीका वचनिका पंडित जयचंदजी कृता
टीका
निका . पान .२०४
भ ५
॥ दोहा ॥ सकल द्रव्य पर्यायकू जानि तजे रुपराग ।।
अद्भुत अतिसैं जिन धरें नमूं ताहि बडभाग ॥ १॥
ऐसे मंगल कार पंचम अध्यायकी वचनिका लिखिये है। तहां सर्वार्थसिद्धि नाम संस्कृतटीकाका कर्ता कहै है। जो, सम्यग्दर्शनके विपयभावकरि कहे जे जीवआदि पदार्थ, तिनवि जीव पदार्थका तो व्याख्यान किया । अब आगैं | अजीव नामा पदार्थ विचारवि प्राप्त हुवा, ताका नाम तथा भेद कहनेकू सूत्र कहै हैं -
॥ अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः ॥१॥ याका अर्थ- धर्म अधर्म आकाश पुद्गल ए अजीवकाय हैं । इहां कायशब्द है सो शरीरके अर्थमैं है । तौ || उपचारतें इहां अध्यारोपण किया है। जैसे शरीर पुद्गलद्रव्यके प्रचय कहिये समूहरूप है, तैसें धर्म आदि द्रव्य भी प्रदेशनिके प्रचयरूप हैं । तातै इनकू भी कायकी ज्यौं काय ऐसा नाम कह्या है । बहुरि ए अजीव जीवरहित हैं, तातें अजीवकाय कहिये । इहां विशेपणविशेष्यका संबंध है । तातें कर्मधारय समास है । इहां कोई पूछे है, जो, नीला कमल इत्यादिवि विशेषणविशेष्यका योग होतें व्यभिचार है । नीलवस्तु और भी हो है, तातै व्यभिचारके प्रसंगते कर्मधारय समास हो है । इहां अजीवकायविर्षे कहा व्यभिचार है ? ताकू कहिये है, अजीवशब्द है सो कायरहित जो कालद्रव्य ताविपैं भी वतॆ है । बहुरि कायसहित जीव भी है, तातै इहां यहु समास वणे है । वहुरि पूछे है, कायशब्द कौन अर्थि है ? ताकू कहिये, प्रदेशवहुत्व जनावनेके अर्थि है । धर्मादिक द्रव्यके प्रदेश बहुत हैं ।