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टीका
आदि वस्तु तौ पुद्गलद्रव्य हैं, इनके कर्मका बंध उदय नाही, तिनकी भी स्थिति प्राणीनिके कर्मके उदयके अनुसारी है। | जो ऐसे न मानिये तो समानकारणते उपज्या समानकालमें उपज्या समानक्षेत्रमें उपज्या समान जिनका आकार ऐसें । ३ घटनिकी समान स्थिति चाहिये, सो है नाहीं, ताते जे घटादिकके भोगनेवाले प्राणी तिनके कर्मके उदयके अनुसार तिनकी
| भी स्थिति है। निमित्तनैमित्तिकभावरूप वस्तुस्वभाव है ॥ सर्वार्थ
वच ऐसे जीवपदार्थका स्वरूपविर्षे संसारी जीवनिका स्वरूप कह्या ॥ सो प्रथम अध्यायमें प्रमाण नय निक्षेप अनुयोगनिका स्वरूप कहिकरि द्वितीय अध्यायमें पंचभावरूप आदि जीवपदार्थस्वरूप कह्या । तीसरे चौथे अध्यायमें इन जीव-। निका आधार आदि विशेषका निरूपण किया । जातें जीवपदार्थ है सो एकही अनेकस्वरूप है, तातें द्रव्यपर्यायनिकरि। याविर्षे सर्व अवस्था निर्बाध संभव है । कोई अन्यवादी जीवकू एकरूपही कहै है, तथा कोई अनेकरूपही कहै, तो। ऐसा जीवपदार्थका स्वरूप प्रमाणबाधित है। अब एकही जीव नानास्वरूप कैसे है सो कहै हैं । जो भावरूप पदार्थ है, सो अनेक रूप है । जातें भाव है सो अभावतें विलक्षण है । अभाव तौ सदा एकरूप है । यात भाव अनेकरूपही होय, ऐसा न मानिये तो भावअभावमें विशेप न ठहरै । सो ऐसा भाव छह प्रकारका है। जन्म । अस्तित्व । निवृत्ति । वृद्धि । अपक्षय । विनाश । तहां बाह्याभ्यंतर कारणके वशते वस्तु उपजै सो जन्म है । जैसें सुवर्ण कडापनाकरि उपज्या । तथा मनुष्यगतिनामकर्मका उदयकरि जीव मनुष्य भया बहुरि अपने निमित्तके वशतें वस्तुका अवस्थान रहै सो अस्तित्व है । सो ऐसा अस्तित्व है सो शब्दके तथा ज्ञानके गोचर है । ऐसें मनुष्यआदि आयुकर्मके उदयकरि जीव मनुष्यआदि पर्यायविर्षे अस्तित्वस्वरूप रहै । बहुरि सत्कै अवस्थान्तरकी प्राप्तिकू निवृत्ति कहिये याकू परिणाम भी कहिये । बहुरि पहले स्वभावतें अनुक्रमतें बधै ताकू वृद्धि कहिये । बहुरि पहले स्वभावते अनुक्रमतें घटै ताकू अपक्षय कहिये । बहुरि पर्यायसामान्यका अभाव होय ताकू विनाश कहिये । ऐसें भाव है सोही अनेकरूप क्षणक्षणमें होय है। सो सर्वथा अभावको ऐसे मानिये तौ सिद्धि होय नाहीं । बहुरि सर्वथा सत्कू नित्यही मानिये तौ ।। प्रत्यक्ष जन्मआदि होय हैं, तिनका विरोध आवै । इत्यादि युक्तिमें सर्वथा एकान्तपक्ष सर्वही बाधित है। __ ऐसेंही अनेकवचन तथा अनेक ज्ञानका विषयपणांतें भी भावरूप जीव नामा पदार्थ एकही अनेकरूप है, वचनकरि अनेकरूप कहिये है ज्ञानकरि अनेकरूप जानिये है, बहुरि अनेकशक्ति करि सहित है । जाते द्रव्य क्षेत्र काल भावके RI निमित्तते अनेक अवस्थारूप होय है, सो बहु शक्तिरूप है तो होय हैं। ऐसें भी एक अनेकरूप है । बहुरि अन्यवस्तुके