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सर्वार्थसिद्धि
टीका
वचनिका पान १९०
म.४
इन्द्रका भी नाम सौधर्म जानना । बहुरि ईशान ऐसा नाम इन्द्रका स्वभावहीते है । सो ईशान इन्द्रनिका निवास सो | ऐशानकल्प है । इहां निवास अर्थविर्षे अण् प्रत्यय जानना । ताके साहचर्यते इन्द्रका भी नाम ऐशान है । बहुरि सनत्कुमार इन्द्रका नाम स्वभावहीतें है । ताका निवास जो कल्प ताका नाम सानत्कुमार है। इहां भी निवास अर्थविर्षे अण् प्रत्यय है । ताके साहचर्यते सानत्कुमार नाम इन्द्रका होय है । बहुरि महेन्द्र ऐसा नाम इन्द्रका स्वभावहीतें है। ताका निवास जो कल्प ताका नाम माहेन्द्र है। यहां भी निवास अर्थवि अण् प्रत्यय है । ताके साहचर्यतें भी इन्द्रका नाम माहेन्द्र है । ऐसही ब्रह्म ब्रह्मोत्तर आदि कल्पका तथा इन्द्रका नाम जानना । बहुरि उपरि उपरि दोय दोयका संबंध आगमकी अपेक्षातें जानना । तहां पैला तो सौधर्म ऐशान ए दोय कल्प हैं । इनके उपार सानत्कुमार माहेन्द्र ए दोय हैं । इनके उपरि ब्रह्मलोक ब्रह्मोत्तर ए दोय हैं। इनके उपरि लांतव कापिष्ट ए दोय हैं। इनके उपरि शुक्र महाशुक्र ए दोय हैं । इनके उपरि शतार सहस्रार ए दोय हैं। इनके उपरि आनत प्राणत ए दोय हैं । इनके उपरि आरण अच्युत ए दोय हैं । इहां कल्पका युगलका उपरि उपरि दोय दोय कहना अंतके दोय युगलनिके जुदी विभक्ती करी, समास न किया, तातें जाना जाय है। वहरि नीचले च्यारि कल्पवि वहरि उपरिके च्यारि कल्पवि तौ च्यारि च्यारि इन्द्र जानने । बहुरि बीचके आठ कल्पनिवि च्यारिही इन्द्र जानने । सो ऐसे हैं- सौधर्म ऐशान सानत्कुमार माहेन्द्र इन च्यारिवि च्यारि इन्द्र । ब्रह्मलोक ब्रह्मोत्तर इन दोयमें एक ब्रह्म नाम इन्द्र है । लातव कापिष्ट इन दोयमें एक लांतव नाम इन्द्र । शुक्र महाशुक्र इन दोयमें एक शुक्र नाम इन्द्र । शतार सहस्रार इन दोयमें एक शतार नाम इन्द्र । आनत प्राणत आरण अच्युत इन च्यारिमें च्यारि इन्द्र हैं । ऐसें कल्पवासीनिके बारह इन्द्र हैं ॥
बहुरि लोकनियोगके उपदेशते तत्त्वार्थवार्तिकवि इन्द्र चौदह भी लिखे हैं । तहां बारह स्वर्गमें तौ बारह अर ऊपरके च्यारि स्वर्गनिमें दोय ऐसें । अब इहा उपार उपार कह्या, सो कहांते गिनिये सो कहै है । जम्बूद्वीपविर्षे मेरूपर्वत हजार योजन तो पृथ्वीमें अरु निन्यानवै हजार योजन ऊंचो ताके नीचै तौ अधोलोक कहिये । बहुरि मेरुबराबर मोटाई बहुरि तिर्यक् फैलवा तिर्यग्लोक है । बहुरि मेरुकै ऊपरि ऊर्ध्व लोक है । मेरुकी चूलिका चालीस योजनकी ऊंची है । ताके उपरि बालका अन्तरमात्र तिष्ठया सौधर्मस्वर्गका ऋजु नामा इन्द्रकविमान है । अन्य सर्व याका वर्णन लोकनियोग ग्रंथतें जाननां । बहुरि नवसु ग्रैवेयकेपु ऐसा वचन है, तहां नवशब्दकै जुदी विभक्ति करनेका यहु प्रयोजन है।
जो ग्रैवेयकतें जुदा नव विमान अनुदिश नामधारक हैं ऐसा जनाया है । तातें अनुदिशका ग्रहण करना । इनके सौधर्म३ कल्पतें लगाय अनुत्तरपर्यंत उपरि उपरि तिरेसठि पटल हैं । तहां प्रथमयुगलमें तो इकतीस पटल हैं । द्वितीय युगलमें