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वच
निका
सिद्धि टीका
पान
अ.४
सात पटल हैं । तीसरे युगलमें च्यारि पटल हैं । चौथे युगलमें दोय पटल हैं । पांचवां युगलका एकही पटल है । छठा युगलका एक पटल है । सातमा आठमा युगलके छह पटल हैं ऐसें बावन पटल तौ स्वनिके हैं। बहुरि नवग्रैवेयकके नव पटल हैं । बहुरि एक अनुदिशका, एक पंचअनुत्तरका ऐसें तिरेसठि पटल जानने ॥ आगें इन वैमानिक देवनिके परस्पर विशेष है, ताके जनावनेके आर्थि सूत्र कहै हैं
॥ स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्याविशुद्धीन्द्रियावधिविषयतोऽधिकाः ॥ २०॥ याका अर्थ- वैमानिक देव हैं ते स्थिति प्रभाव सुख युति लेश्याकी विशुद्धि इन्द्रियनिका विषय अवधिका विषय इनकरि उपरिउपरि स्वर्गस्वर्गप्रति तथा पटलपटलप्रति अधिकअधिक हैं। तहां अपनी आयुके उदयतें तिस भववि. शरीरसहित तिष्ठना, सो स्थिति कहिये, बहुरि परके उपकार तथा अपकार करनेकी शक्तिकू प्रभाव कहिये। बहुरि इन्द्रियविषयका भोगवना, सो सुख कहिये; बहुरि शरीर तथा वस्त्रआभरणादीकी दीप्ति, सो द्युति कहिय; बहुरि कपायकार
योगनिकी प्रवृत्तिरूप लेश्या ताकी विशुद्धि कहिये उज्वलता, बहुरि इन्द्रियनिकार विषयनिका जानना; बहुरि अवधिकरि | द्रव्य क्षेत्र काल भावरूप विषयका जाननां इनकार अधिक अधिक है ॥
आगें स्थिति आदिकार जैसे अधिक हैं, तैसें गति आदिकरि हीन हैं ऐसें कहै हैं
॥ गतिशरीरपरिग्रहाभिमानतो हीनाः ॥ २१ ॥ याका अर्थ- ए वैमानिक देव हैं ते गति शरीर परिग्रह अभिमान इनकारी उपरिउपरि हीन कहिये घटतेघटते हैं । तहां क्षेत्रसे अन्यक्षेत्र जाना सो गति कहिये । शरीर तिनके वैक्रियक कह्या सोही। बहुरि लोभकषायके उदयनै विषयनिविर्षे संगति करना सो परिग्रह कहिये । बहुरि मानकषायके उदयते उपजा जो अहंकार गर्व सो अभिमान कहिये । इनकरि उपरि उपरि हीन हैं । जातें अन्यदेशविर्षे क्रीडा रतिका अभिलाष तीव्र नाहीं । अपने योग्य क्षेत्रविही तृप्ति है । तातें तो गमन थोडा करै है । बहुरि शरीर सौधर्म ऐशानके देवनिका तो सात हस्तका है । बहुरि सनत्कुमार | माहेन्द्रका छह हाथका है । ब्रह्मलोक ब्रह्मोत्तर लांतव कापिष्टविर्षे पांच हाथका है । शुक्र महाशुक्र शतार सहस्रारविर्षे
च्यारि हाथका है । आनत प्राणतविर्षे साढा तीनि हाथका है । बहुरि आरण अच्युतविर्षे तीनि हाथका है । अधो- । | अवेयकविर्षे अढाई हाथका है । मध्यप्रैवेयकविर्षे दोय हाथका है । उपरिगवेयकविर्षे बहुरि अनुदिशविर्षे डेढ हाथ है ।