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सर्वार्थ
सिदि
तीनि प्रकार हैं । इन्द्रक, श्रेणीबद्ध, पुष्पप्रकीर्णक । तहां इंद्रकविमान तौ इन्द्रकी ज्यों बीच तिष्टें हैं। तिनकी च्यायौं दिशामें आकाशप्रदेशकी श्रेणीकी ज्यौं तिष्ठं हैं ते श्रेणीबद्ध हैं । बहुरि विदिशानिवि विखरे फूलनिकी ज्यों तिष्ठे हैं, तातै । ते पुष्पप्रकर्णिक हैं। आगै तिन वैमानिक देवनिके भेदके ज्ञानके आर्थि सूत्र कहैं हैं -
निका । ॥ कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च ॥ १७ ॥ याका अर्थ- ते वैमानिक दोय प्रकार हैं । तहां कल्प जे स्वर्ग तिनकेविर्षे उपजें ते तौ कल्पापपन्न हैं । बहरि १८ ग्रैवेयक आदिवि उपजे ते कल्पातीत कहिये ॥
आगें तिनके अवस्थानविशेष जाननेके आर्थि सूत्र कहैं हैं
पान
टीका 0
म.४
उपर्युपरि ॥१८॥ याका अर्थ- यह सूत्र तिन वैमानिकदेवनिका तिर्यगवस्थानके निषेधके अर्थ है । ते ज्योतिषीनिकी ज्यों तिर्यक अवस्थित नाहीं हैं । बहुरि व्यंतरनिकी ज्यौं विषम जहांतहां अवस्थित नाहीं हैं । ते कल्प उपरि उपरि हैं ।
आगें पूछे हैं, जो, ऐसे हैं ए उपरि हैं, तो केते कल्पविमानविर्षे देव हैं ? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं
॥ सौधर्मेशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्टशुक्रमहाशुक्रशतारसहस्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु अवेयकेषु विजयवैजयन्तजयन्तापराजितेषु
सर्वार्थसिद्धौ च ॥ १९ ।। याका अर्थ- इन सौधर्मादिक शब्दनिका कल्प नाम कैसे भया सो कहैं हैं । व्याकरण विर्षे अण् ऐसा प्रत्यय । है, सो च्यारि अर्थमें होय है। ताकरि कल्प नाम होय । तथा स्वभावहीतें ऐसा नाम है । बहुरि इन्द्रका भी नाम यहही,
सो भी स्वभावते तथा कल्पके साहचर्यते होय हैं । सो कैसे ? पहले स्वर्गविर्षे सुधर्मा नाम सभा है सो यहु सभा जामैं होय ताका नाम सौधर्मकल्प कहिये । इहां अस्ति अर्थमें अण् प्रत्यय जानना । बहुरि इस कल्पके साहचर्यते