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________________ སྟཝའཆཆཆཟཆ་༤༤ निका पान 15 किंनरनिकै किन्नर किंपुरुष ए दोय इन्द्र है। किंपुरुषनिके सत्पुरुप महापुरुष ए दोय इन्द्र है। महोरगनिके अति काय महाकाय ए दोय इन्द्र है। गंधर्वनिके गीतरति गीतयश ए दोय इन्द्र है। यक्षनिकै पूर्णभद्र माणिभद्र ए दोय | इन्द्र है । राक्षसनिके भीम महाभीम ए दोय इन्द्र है। पिशाचनिके काल महाकाल ए दोय इन्द्र है । भूतनिके | प्रतिरूप अप्रतिरूप ए दोय इंद्र है ॥ सर्वायसिनि ____ आगें इन देवनिके सुख कैसा है ऐसे पूछ तिनके सुख जाननेके अर्थि सूत्र कहै हैं-- टीका ॥ कायप्रवीचारा आ ऐशानात् ॥ ७ ॥ याका अर्थ प्रवीचार कहिये कामसेवन सो भवनवासीनितें लेइ ऐशानस्वर्गपर्यतके देवनिके कायकरि कामसेवन है । इनके संक्लेशकर्मका उदय है । ताते मनुष्यकी ज्यों स्त्रीका विषयसुख भोगवै हैं । इहां “ आ ऐशानात् " इस शब्दविर्षे आङ् उपसर्ग अभिनिजि अर्थमें हैं, तातें ऐसा अर्थ भया, जो, भवनवासीनितें लगाय ऐशानपर्यंतके कायकरि मैथुन है । बहुरि इहां संधि न करि सो संदेह निवारणके अर्थि न करी है । संधि करिये तब ऐशान ऐसाही सिद्ध होय, तब संदेह रहै, जो, इहां उपसर्ग है कि नाही ? तातें संदेह मेटनेके आर्थि उपसर्ग जुदा राखा है ॥ आगें ऐशानतांई मर्यादा कही ताते अगिले स्वर्गनिविर्षे सुखका विभाग जान्यां नाही, ताके प्रतिपादनके आर्थिं सूत्र कहें हैं १८४ ॥ शेषाः स्पर्शरूपशब्दमनः प्रवीचाराः ॥ ८॥ याका अर्थ- शेप कहिये कहे तिनते अवशेप रहे देव तिनकै स्पर्श रूप मन इनवि मैथुन है । तहां कहे तिनतें अवशेष जे कल्पवासी तिनकै आगमते अविरोधरूप संबंध करना । पहले सूत्रमें प्रवीचारका ग्रहण तो थाही, यहां फेरि प्रवीचारका ग्रहण याहीके आर्थि है । सो आगमसूं अविरोध स्पर्शादिमैथुन लेना । तहां सनत्कुमार माहेन्द्रस्वर्गके देव देवांगनाके स्पर्शमात्रहीकरि परमप्रीति पावै हैं । तैसेंही देवांगना भी परमसुख पावै हैं । बहुरि ब्रह्म ब्रह्मोत्तर लांतव । कापिष्ट स्वर्गके देव देवांगनाके शृंगार आकार विलास चतुर मनोज्ञ वेप रूपके देखनेहीकरि परमसुखकं पावै है। शुक्र महाशुक्र शतार सहस्रारवि देव देवांगनाके मधुर संगीत गावना कोमल हँसना ललित बोलना आभूपणनिके शब्दका
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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