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सर्वार्यसिदि
पान
टीका म.३
ते तिर्यचजीव हैं । तिनकी आयुकी स्थिति उत्कृष्ट तौ तीनि पल्यकी है । जघन्य अंतर्मुहूर्तकी है । मध्य नानाभेद है ॥ H इहां विशेष जो, तिर्यंच तीनि प्रकार है। एकेंद्रिय विकलत्रय पंचेन्द्रिय । तहां एकेन्द्रियनिविपें शुद्धपृथिवीकायिक
जीवनिकी उत्कृष्ट आयु तौ बाराहजार वर्षकी है । बहुरि कगेर पृथिवीकायिककी बाईस हजार वर्षकी है । वनस्पतिकायिककी दशहजार वर्षकी है । अप्कायिककी सातहजार वर्षकी है। वायुकायिककी तीनि हजार वर्षकी है। तेजकायिककी
शिवचतीनि दिनरातिकी है । बहुरि विकलत्रयमें दोय इन्द्रियनिकी वारा बरसकी है । तीनि इन्द्रियनिकी गुणचास दिनकी है। चौइंद्रिय-निका | निकी छ महीनाकी है। पंच इन्द्रियनिवि मत्स्यादि जलचरनिकी तौ कोडिपूर्वकी है। वहुरि परिसर्प जे गोह नवल्या आदि तिनकी नवपूर्वांगकी है । बहुरि उरगनिकी बियालीस हजार वर्षकी है । बहुरि पक्षीनिकी वहत्तरि हजार वर्षकी है । बहुरि चौपदकी तीनि १७८ पल्यकी है । ऐसें तो उत्कृष्ट है । बहुरि जघन्य इन सर्वहीकी अंतर्मुहूर्तकी है । इहां कोई पूछ, भवस्थिति कायस्थिति कही, तिनका अर्थ कहा ? ताका समाधान- एकभवकी स्थिति तो भवस्थिति कहिये । बहुरि एककायमें अनेक भव धारै ताकू कायस्थिति कहिये । जैसे पृथिवी अप् तेज वायुकायिक जीवनिके कायस्थिति असंख्यातलोकप्रमाण है, तिनहीमें उपजवौ करै तौ एता कालताई उपजवौ करै । वहुरि वनस्पतिकायका अंतकाल है सो असंख्यातपुद्गलपरिवर्तनमात्र । है । बहुरि विकलत्रयका असंख्यातहजार वर्ष है। पंचेन्द्रियनिकी तियंचमनुष्यनिकी पृथक्त्वकोटिपूर्व अधिक तीनि पल्य है । बहुरि जघन्य कायस्थिति इन सर्वनिकी अंतर्मुहूर्तमात्र है । वहुरि देवनारकीनिकी भवस्थिति है सोही कायस्थिति है । देवसूं देव होय नाही, नारकीसूं नारकी होय नाही ॥ | इहां कोई पूछे, जो, जीवतत्त्वका निरूपणका प्रकरणविर्षे द्वीपसमुद्रनिका निरूपणका कहा प्रयोजन ? ताका समाधानजो, इन द्वीपसमुद्रनिकै आधार मनुष्यलोक है । तहां क्षेत्रविपाककी कर्मप्रकृतिके विशेपके उदयतें अढाई द्वीपहीके विर्षे मनुष्य उपजै हैं । तिनके निरूपणके अथि द्वीपसमुद्रनिका निरूपण भी प्रयोजनवान् है । जो इनका निरूपण न करिये तो मनुष्य तिर्यंच जीव इनके आधार हैं सो जीवतत्त्वका विशेष निरूपण कैसे बनें ? वहरि विशेपनिरूपणाविना जीवतत्त्वका श्रद्धान कैसे होय ? बहुरि श्रद्धानविना सम्यक्चारित्र कैसे होय ? ऐसे होते त्रयात्मक मोक्षमार्गकी कथनी कैसे बनें ? ताते स्याद्वादीनिकै सर्वनिरूपण युक्त है ॥
बहुरि इहां ईश्वरवादी कहै है, जो, ऐसा अधोलोक मध्यलोकका निरूपण किया सो ऐसी रचना तो कोई बुद्धिमानकी | करी हो है। ताते इस रचनाका कर्ता ईश्वर है । तहां प्रथम ती शरीरसहित ईश्वर मानै है ताकू कहिये, जो जगत्