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सर्वार्थ
सिद्धि
टीका भ३
जगच्छ्रेणी कहिये । भावार्थ-सात राजूका एकप्रदेश पंक्तिरूप डोराकू जगत्श्रेणी कहिये है । बहुरि जगत् श्रेणीकू जगत्श्रेणिकरि गुणे जगत्प्रतर होय है । बहुरि जगत्प्रतरकू जगत्श्रेणिकार गुणे जगवन हो है याकू लोक कहिये, सात राजू लांबा सात राजू चौडा सात राजू ऊंचा क्षेत्रका प्रदेशका नाम लोक है । बहुरि क्षेत्रमान दोय प्रकार है अवगाहक्षेत्र विभागक्षेत्र । तहां अवगाहक्षेत्र तो एक दोय तीन च्यारि संख्यात असंख्यात पुद्गलके परमाणुके स्कंधनिकरि . अवगाहने योग्य जो एकतै ले असंख्यात आकाशके प्रदेश हैं सो अनेकप्रकार हैं । बहुरि विभागक्षेत्र अनेकप्रकार है
निका असंख्यातश्रेणीरूप तथा धनांगुलक्षेत्ररूप । ताके असंख्यातवां भाग एक तथा ताके बहुभाग इत्यादि तथा वितस्ति हाथ
पान धनुष इत्यादि । बहुरि कालमान सर्वजघन्यकाल तौ एकसमयकू कहिये । सो एक पुद्गलका परमाणु एक आकाशके प्रदेशमैं १७७ तिष्ठता मंदगति दूसरे आकाशके प्रदेशमैं आवै तेता कालकू समय कहिये, सो कालका निर्विभाग एक अंश है । बहुरि असंख्यातसमयनिकी एक आवली कहिये । बहुरि संख्यात आवलीका एक उछ्वास है, तेताही निःश्वास कहिये । ते दोऊ निरुपद्रव निरोगी पुरुषका एक प्राण कहिये, ऐसे सात प्राणका एक स्तोक कहिये । ऐसे सात स्तोकका एक लव कहिये, सतहत्तर लवका एक मुहूर्त कहिये । तीस मुहूर्तका एक रातिदिन कहिये । पंदरा दिनका एक पक्ष है। दोय पक्षका एक मास है । दोय मासका एक ऋतु है । तीनि ऋतुका एक अयन है। दोन अयनका एक संवत्सर है। चौराशी लाख वर्षका एक पूर्वांग है । चौराशी लाख पूर्वांगका एक पूर्व है । ऐसीही तरह बधता पूर्वाग, पूर्व, नयुतांग, नयुत, कुमुदांग, कुमुद, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, कमलांग, कमल, त्रुट्यंग, त्रुट्य, अटटांग, अटट, अममांग, अमम, हूहूंग, हूहू, लतांग, लता, महालता इत्यादि संज्ञा जाननी । काल है सो वर्षनिकी गणनाकार तौ संख्यातौ जानिये । संख्याततै परै असंख्यात है पल्योपम सागरोपम इत्यादि । यात परै अनंतकाल है । अतीत अनागत है सो सर्वज्ञके प्रत्यक्ष है । बहुरि भावमान पांचप्रकार ज्ञान सो पहले कहे सो जानने । इहां पल्यके कथनकी उक्तं च गाथा है ताका अर्थ-व्यवहार उद्धार अद्धा ऐसें तीनि पल्य हैं सो जानने । तहां व्यवहार तौ संख्याकी उत्पत्तिमात्र जाननेकू है । बहुरि उद्धारतें द्वीप समुद्र गणिये । बहुरि अद्धातें कर्मनिकी स्थिति वर्णन करी है ॥ आगें कहै हैं, जो, ए उत्कृष्ट जघन्य स्थिति मनुष्यनिकी कही, तैसेंही तिर्यचनिकी है ताका सूत्र
॥ तिर्यग्योनिजानां च ॥ ३९॥ याका अर्थ- तिर्यचनिकी योनि तिर्यचगतिनामा नामकर्मके उदयकरि जन्म होय सो है, तिस योनिविर्षे उपजे होय