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बचनिका
पाल
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11 ताहीकरि द्वीप समुद्र तथा तिनिकी वेदी पर्वत विमान नरकके प्रस्तार आदि अकृत्रिम वस्तुका विस्तार आयाम आदि
मापिये है। तहां छह अंगुलका एक पाद कहिये । बारह अंगुलका एक वितस्ति कहिये । दोय वितस्तिका एक हाथ कहिये। दोय हाथका एक किकु कहिये । दोय किकुका एक धनुष्य कहिये । दोय हजार धनुण्यका एक कोश कहिये ।
च्यारि कोशका एक योजन कहिये । ऐसें जानना । आगै पल्यका प्रमाण कहिये है। तहा पल्य तीनप्रकार है । सर्वार्थसिद्धि
2 व्यवहार, उद्धार, अद्धा । तहां पल्य नाम खाडेका हैं। तहां आदिका व्यवहारपल्य तो उत्तर दोय पल्यकी उत्पत्ति जानटीका नेके अर्थि है । इसते कछु अन्य वस्तुका प्रमाण न करिये । बहुरि दूसरा उदारपल्यतै द्वीप समुद्र गिणिये है । बहुरि
तीसरा अद्धापल्यते आयुकर्मादिकी स्थिति गिणिये है। तहां प्रमाणांगुलप्रमाणकरि एक योजनका चोडा लांबा ऊंडा तीन खाडा कीजिये । जामै एकतै ले सात दिनताईका भया मीडा उत्तमभोगभूमिका ताका बालके अग्रभाग कतरणीतें छेदिये । ऐसे खंड करिये ताका फेरि कतरणीतें दूसरा खंड न होय । ऐसे रोमखंडनित व्यवहारपल्यनामा खाडा खूदि खूदि गाढा परिपूर्ण भरिये । तामै पैतालीस अंकपरिमाण रोम माये । तिनि रोमनिकं सौ वर्षमैं एक एक रोम काढिए । तब जेता कालमें खाडा रीता होय तेता काल व्यवहारपल्यका है। वहरि तिनि रोमनिकें एक एकके असंख्यातकोडिवपके जेते समय होय तेते खंड करिये। एकएक समयमैं एक एक रोम काढिये । जेते कालमें निकसि चुकै तेता काल एक उदारपल्यका है । ऐसे दस कोडाकोडि उद्धारपल्य होय तव एक उद्वारसागरोपम कहिये । ऐसे अढाई सागरके जेते समय तेते द्वीप समुद्र है । वहुरि उद्धारपल्यके रोमछेद है तिनिके एक एक रोमछेदके सौ वर्पके जेते समय होय तेते खंड करिये । तिनिकू एक एक समयमै काढिये । यामैं जेता काल लागै तेता काल एक अद्धापल्यका है। त्रिलोकसारमैं ऐसा कह्या है, उद्दारपल्यके रोमके एक एकके असंख्यात वर्षके समयमात्र खंड करने । ऐसे दस कोडाकोडी अद्धापल्यनिका एक अद्धासागर कहिये । बहुरि दशकोडाकोडी अद्यासागरका एक अवसर्पिणी काल कहिये । तेताही उत्सर्पिणीकाल कहिये इस अद्धापल्यनिकरि नारक तिर्यच देव मनुष्यनिकी कर्मकी स्थिति तथा भवकी स्थिति तथा कायकी स्थिति जानिये । बहुरि अद्धापल्यका जेते अईछेद होय तिनिळू एक एक वखेरि एक एकपरि अद्धापल्य स्थापि, परस्पर गुणिये । तहा जो राशि निपजै ताळू आकाशके प्रदेशनिकी पंक्तिरूप करिये सो सूच्यंगुल है । बहुरि सूच्यंगुलकू सूच्यंगुलकरि गुणिये तब प्रतरांगुल कहिये । बहुरि प्रतरांगुलकू सूच्यंगुलसूं गुणिये तव धनांगुल होय । बहुरि असंख्यात वर्षका जेता समय होय तेता खंड अन्दापल्यका करिये । तिनिमैसूं एक खंड लेय ताकू वखेरि एक एक स्थापि तिनि ऊपरि एक एक घनांगुल माडिये । तिनिकू परस्पर गुणिये तव जो राशि निपजै ताळू
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