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सर्वार्थ
वच
निका
पान | १७३
एक महाशलाकाकुंड भरि जाय । तहां अनवस्थाकुंड केते भये? छियालीस अंकनिका घनकरि एते ते अनवस्थाकुड भये । तिनिमें जो अंतका अनवस्थाकुंड जिस द्वीप तथा समुद्रकी सूचीप्रमाण भया तामैं जेते सरतूं माये तेता परिमाण जघन्यपरीतासंख्यातका जाननां। बहुरि जघन्यपरीतासंख्यातकै ऊपरि एकएक बधता मध्यपरीतासंख्यातके भेद जाननां । बहुरि एक घाटि जघन्य युक्तासंख्यात प्रमाण उत्कृष्ट परीतासंख्यात जाननां । अब जघन्ययुक्तासंख्यातका परिमाण कहिये
है । जघन्य परीतासंख्यातका विरलन करिये । बहुरि एकएक ऊपरि एकएक परीतासंख्यात मांडि परस्पर गुणिये । सिद्धि टी का पहलांसूं दूसराकरि गुणिये जो परिमाण आवै ताकू तीसरासूं गुणिये जो परिमाण आवै ताकू चौथासूं गुणिये ऐसें गुणतें
अंतवि राशी होय सो जघन्ययुक्तासंख्यात है । एते आवलीके समय हैं । बहुरि याके ऊपरि एक एक बधता एक घाटि उत्कृष्टयुक्तासंख्यातपर्यंत मध्ययुक्तासंख्यातके भेद हैं । बहुरि एक घाटि जघन्य असंख्यातासंख्यातपरिमाण उत्कृष्ट युक्तासंख्यात है। अब जघन्य असंख्यातासंख्यात कहिये है । जघन्य युक्तासंख्यातकू जघन्ययुक्तासंख्यातकरि एकबार गुणिये जो परिमाण आवै सो जघन्य असंख्यातासंख्यात है । याकै ऊपरि एक एक बधता एक घाटि उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातपर्यंत मध्य असंख्यातासंख्यातके भेद हैं । एक घाटि परीतानंतप्रमाण उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात है। अब जघन्यपरीतानंत कहिये है। जघन्य असंख्यातासंख्यात परिमाण तीन राशि करनै एकशलाका एक विरलन एक देय । तहां विरलनराशिकू एकएक जुदा जुदा वखेरनां । एक एककै ऊपरि एक एक देयराशि धरनां ।
बहुरि तिनिळू परस्पर गुणिये । ऐसें करि शलाका राशिमैसूं एक घटावना । बहुरि जो परिमाण आया ताकै परिमाण १ दोय राशि करनां । तहां एकराशिका विरलनकरि एक एककै परि देयराशीकी स्थापना कार परस्पर गुणिये । ऐसें
करि उस शलाकाराशिसूं एक और घटाय देना । बहुरि जो परिमाण आया तितनै परिमाण दोय राशी करनां । एकका विरलनकरि देयराशीकू एकएक परि देय परस्पर गुणते जो परिमाण आया तिस परिमाणनै देयराशीकरि परस्पर गुणनां । अरु शलाकाराशीमैसूं एकएक घटाता जाना जब वह शलाकाराशी सर्व पूर्ण होय जाय । तब तहां जो कछु परिमाण हुवा सो यह असंख्यातासंख्यातका मध्यभेद है । सो तितने परिमाण तीन राशी फेरि करनां । शलाका विरलन देय । तहां विरलनराशीको एक एक वखेरी एक एक परि देयराशि देनौं । परस्पर गुणिये तब शलाकाराशिभैंस्यों एक काढि लेनां । बहुरि जो परिमाण आया ताका विरलन करि एक एक परि एक एक राशी देय परस्पर गुणिये तब शलाकाराशीमैसों एक और काढि लेनां । ऐसें करते करतें दूसरी बार किया शलाकाराशी पूर्ण होय । तब जो परिमाण आया सो भी मध्य असंख्यातासंख्यातका भेद है । बहुरि इस परिमाण शलाका आदि तीन राशि स्थापने तहां विर
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