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________________ सिरि पान १७२ उत्कृष्ट तीन कालका समयसमूह । भावमानविर्षे जघन्य सूक्ष्मनिगोदिया लब्धिअपर्याप्तका लब्ध्यक्षरज्ञानका अविभागप्रतिच्छेद, उत्कृष्ट केवलज्ञान । बहुरि द्रव्यमानका दोय भेद एक संख्यामान एक उपमामान । तहां संख्यामानके तीन भेद संख्यात, असंख्यात, अनंत । तहां संख्यात, जघन्य मध्यम उत्कृष्टकरि तीन प्रकार है । बहुरि असंख्यात है सो सर्वार्थ परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात असंख्यातासंख्यात इनि तीनूहीके जघन्य मध्यम उत्कृष्टकरि नव भेद हैं । बहुरि अनंत है सो परीतानंत युक्तानंत अनंतानंत इनि तीनूंके जघन्य मध्यम उत्कृष्टकरि नव भेद हैं । ऐसें संख्यामानके इकईस भेद टीका भये । तिनिवि जघन्यसंख्यात दोय संख्यामात्र है । बहुरि तीनकू आदि देकर एक घाटि उत्कृष्ट संख्यातपर्यंत म.३ मध्यम संख्या है। बहुरि एक घाटि जघन्य परीतासंख्यात प्रमाण उत्कृष्टसंख्यात जाननां । सो जघन्य परीतासंख्यातके जाननेकै आर्थ उपाय कहै हैं । अनवस्था शलाका प्रतिशलाका महाशलाका नामधारक च्यारि कुंड करने । तिनिका जुदा 8 जुदा प्रमाण जंबूद्वीप प्रमाण चौडा एक हजार योजनका ऊंडा जाननां । तिनिमैं अनवस्थाकुंडकू गोलसरसूंकरि तिघाऊ भरणा । तामै छियालीस अंक परिमाण सरतूं मावै, तब अन्य एक सरसूं शलाकाकुंडमैं नाखि कोई मनुष्य बुद्धिकरि तथा देव हस्तादिकरि जंबूद्वीपादिकमैं एक सरसूं द्वीपमैं एक समुद्रमै गेरता जाय तब वे सरसूं जहां पूर्ण होय तिस द्वीप ३ तथा समुद्रकी सूचीप्रमाण चौडा अर ऊंडा हजार योजनहीका अनवस्थाकुंड करी सरसूंसौ भरै । अरु एक सरसूं अन्य ल्याय शलाकाकुंडमै गेरै । अनवस्थाकी सरसूं तहातै अगिलै द्वीप तथा समुद्रमै एक एक गेरता जाय तब तेऊ सरसूं | जिस द्वीप तथा समुद्र में वीतें तहां तीसरा अनवस्थाकुंड तिस द्वीप तथा समुद्रकी सूचीप्रमाणकरि सरसूंसौं भरै । अर एक सरसूं अन्य शलाकाकुंडमैं गेरै । ऐसैही अनवस्थाकी सरसूं एकएक द्वीप तथा समुद्रमै गेरता जाय, ऐसै अनवस्था | तौ वधता जाय अर एकएक सरसूं शलाकाकुंडमैं गेरता जाय तव एक शलाकाकुंड भरि जाय । ऐसें करतें छियालीस अंकप्रमाण अनवस्थाकुंड वणे तव एक शलाकाकुंड भन्या । तब एक सरसूं प्रतिशलाकाकुंडमें गेरै बहुरि उस शलाकाकुंडकं रीता करिये अर आगें आगै अनवस्थाकू पूर्वोक्तरीतिकरि बधै एकएक सरसूं शलाका कुंडमें गेरते गये तब दूसरा शलाकाकुंड भन्या । तव फेरि एक सरसूं प्रतिशलाकाकुंडमै गेरै । बहुरि तिस शलाकाकुंडकू रीता करि तिसही विधानकारि तिसरा शलाकाकुंड भन्या । ऐसें करते करतें छियालीस अंकनिप्रमाण शलाकाकुंड भरि चुकै । तब एक प्रतिशलाकाकुंड भरै । तब एक सरसूं महाशलाकाकुंडवि गेरै । बहुरि ऐसै द्वीपसमुद्रनिमें सरसूं गेरता जाय अनवस्थाकुंड बधते जाय शलाकाकुंड भरि भरि रीते करते जाय, प्रतिशलाकाकुंडमें एक एक सरसं गेरता जाय तब प्रतिशलाकाकुंड भरते जाय । तव इसही विधानकरि एक एक सरसूं महाशलाकाकुंडमें गेरतें गेरतें छियालीस अंकप्रमाण प्रतिशलाकाकुंड भरै । तब एक
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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