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वच
पान
॥ भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तरकुरुभ्यः ॥ ३७ ॥ याका अर्थ-भरतक्षेत्र पांच ऐरावतक्षेत्र पांच विदेह पांचमेरुसंबंधी पांच ऐसें पंदरे कर्मभूमि हैं । तहां विदेहके
कहनेते देवकुरु उत्तरकुरु भी तिस क्षेत्रमैं हैं । ताका प्रसंगके निषेधकै अर्थि तिनि विनां ऐसे कया है । जाते वे दोऊ सर्वार्थ
उत्तम भोगभूमि हैं । हैमवत जघन्यभोगभूमि है। हरिक्षेत्र मध्यम भोगभूमि है। रम्यक मध्यम भोगभूमि है । हैरण्यवत सिद्धि
निका टीका
जघन्यभोगभूमि है । बहुरि अंत:पकू भी भोगभूमिही कहिये है । इहां पूछ है, कर्मभूमिपणा काहेरौं कह्या है ? ताका भ३ समाधान, कर्मभूमि है सो शुभ अशुभ कर्मके आधार क्षेत्र है । तहां फेरि पूछे है कर्मका आश्रय तौ तीनही लोकका १७१
क्षेत्र है। ताका समाधान, जो, याहीतें तहां अतिशयकरि कर्मका आश्रय जानिये है। तहां सातवै नरक जाय, ताका कारण अशुभ कर्म इनि भरतादिक्षेत्रनिविही उपजाईये है । तथा सर्वार्थसिद्धि आदिका गमनका कारण शुभकर्म भी इनिही क्षेत्रनिवि4 उपजाईये है । बहुरि खेती आदि छह प्रकारके कर्म भी इनिही क्षेत्रनिवि आरंभ है । तातें इनि। कर्मभूमि कहिये है । अन्य जे भोगभूमि तिनिविर्षे दशप्रकारके कल्पवृक्षनिकरि कल्पित भोगका अनुभवन है । तातें तिनिकू भोगभूमि कहिये है ॥ ____ आगें, कही जो भूमि, तिनिविर्षे मनुष्यनिकी स्थितिके अर्थ सूत्र कहै हैं
॥ नृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहर्ते ॥ ३८ ॥ a याका अर्थ- मनुष्यनिकी उत्कृष्ट स्थिति तौ तीन पल्यकी है । बहुरि जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्तकी है । मध्यके |
अनेक भेद है । मुहूर्त नाम दोय घडीका है । ताके मध्य होय सो अंतर्मुहूर्त है। इहां कोई पूछे, जो, पल्य कहा ? तहां पल्यका जाननेकै अर्थि प्रसंग पाय प्रमाणका विधानरूप गणती लिखिये है । तहां प्रमाण दोय प्रकार है । एक लौकिक, दूसरा अलौकिक । तहां लौकिक छह प्रकार है । मान, उन्मान, अवमान, गणमान, प्रतिमा पायी माणी इत्यादिक मान जाननां । ताखडीका तोल उन्मान जाननां । चलू इत्यादिकका परिमाण अवमान जानना । एक दोय आदि गणमान जाननां । चिरम तोला मासा आदि प्रतिमान जाननां । घोडाका मोल इत्यादिक तत्प्रतिमान जाननां । बहुरि अलौकिक मानके च्यारि भेद है द्रव्य क्षेत्र काल भाव । तहां द्रव्यमानविर्षे जघन्य एक परमाणु उत्कृष्ट सर्वपदार्थनिका परिमाण । क्षेत्रमानविर्षे जघन्य एक प्रदेश, उत्कृष्ट सर्व आकाश । कालमानविर्षे जघन्य एकसमय