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________________ रीका वचनिका पान १७४ लन राशीकू वखेर एक एककै स्थान देय राशि देय परस्पर गुणिये । तब तीसरा शलाका राशीमैस्यों एक काढि लेनां । बहुरि जो परिमाण आया तिस परिमाण दोय राशीकरि विरलनकं वखेरि देयकू देय परस्पर गुणिये । तब शलाकामैसूं एक और काढि लेनां । ऐसें करते करतें तीसरी शलाका भी पूर्ण होय । तब शलाकात्रय निष्ठापन हूवा कहिये । आगै भी जहां शलाकात्रय निष्ठापन कहे तहां ऐसेंही करनां । अब ऐसे करतें जो मध्य असंख्यातासंख्यातका सर्वार्थ भेदरूप राशि भया ताविपें छह राशि मिलावना । धर्मद्रव्य अधर्म लोकाकाश एकजीव इनि च्यारोंके प्रत्येक लोकप्रमाण सिद्धि प्रदेश बहुरि लोकके प्रदेशनिते असंख्यात लोकगुणां अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति जीवनिका परिमाण बहुरि तातें भी असंख्यातम३ लोकगुणां सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति जीवनिका परिमाण ए छह राशि पूर्वोक्त परिमाणवि मिलाय शलाका विरलनदेय राशि करनी। तिनिका पूर्वोक्त प्रकार शलाकात्रय निष्ठापन करनां ऐसे करतें जो महाराशि मध्य असंख्यातासंख्यातका भेदरूप भया ताविर्षे च्यारि राशि मिलावणे । वीस कोडाकोडि सागरप्रमाण कल्पकालके समय बहुरि असंख्यातलोकप्रमाण स्थितिबंधकू कारणभूत कपायनिके स्थान वहरि तिनि असंख्यातलोकगुणें अनुभागवंधकू कारण कपायनिके स्थान बहुरि इनितें भी असंख्यातलोकगुणै मनवचनकाययोगनिकै अविभागप्रतिच्छेद ऐसै च्यारि राशिपूर्वक परिमाणविपैं मिलावने, जो परिमाण होय तिल परिमाण शलाका विरलन देय । ए तीन राशि करनी । तिनिका पूर्वोक्त प्रकार शलाकात्रय निष्ठापन करनां । ऐसैं करतें जो परिमाण होय सो जघन्यपरीतानंत है। बहुरि याकै ऊपरि एक एक बधता एक घाटि उत्कृष्ट परीतानंतपर्यंत मध्यपरीतानंतके भेद जानने । बहुरि एक घाटि जघन्य युक्तानंत परिमाण उत्कृष्टपरीतानंत जाननां । अब जघन्ययुक्तानंत कहिये हैं। जघन्यपरीतानंतका विरलनकरि एक एक स्थानविपें एक एक जघन्यपरीतानंत थापि परस्पर गुणे जो परिमाण होय सो जघन्ययुक्तानंत जाननां । सो यहु अभव्यराशीसमान है । बहुरि याकै ऊपरि एक एक बधता एक घाटि उत्कृष्टयुक्तांनतपयत मध्ययुक्तानंतके भेद जानने । बहुरि एक घाटि जघन्य अनंतानंत परिमाण उत्कृष्ट युक्तानंत जाननां । अब जघन्य अनंतानंत कहिये हैं । जघन्य युक्तानंतकू जघन्य युक्तानंतकरि एकवार गुणे जो परिमाण होय सो जघन्य अनंतानंत है। बहुरि याकै ऊपरि एक एक बधता एक एक घाटि केवलज्ञानके अविभागप्रतिच्छेदन परिमाण उत्कृष्ट अनंतानंतपयंत मध्य अनंतानंत जाननां । वहुरि उत्कृष्ट अनंतानंत कहिये हैं । जघन्य अनंतानंत परिमाण शलाका विरलन देय ए तीन राशिकरि अनुक्रमतें पूर्वोक्तप्रकार शलकात्रय निष्ठापन करै । यों करते मध्यम अनंतानंतरूप परिमाण होय । ताविप छह राशि मिलावै जीवराशीकै अनंतवै भाग तो सिद्धराशि । बहुरि तातें अनंतगुणां पृथिवी अप तेज वायु प्रत्येक वनस्पति सराशिरहित संसारी जीवराशि मात्र निगोदराशि । बहुरि प्रत्येक वनस्पतिसहित निगोदराशिप्रमाण
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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