________________
सर्वार्यसिन्छि .टी का
दोहा- इस दूजे अध्यायमैं । जीवतत्त्वका रूप ॥
___ वर्णन है बहुभेदतें । जानूं भव्य अनूप ॥ १ ॥ सवैया- जीवके स्वतत्त्व भाव लक्षण दृग्बोध धाव भवी सिद्ध आदि भेद कहे विस्तार ।
इंद्रियनिका दोय रूप विषयका अपार रूप गतिभेद भिन्न भिन्न गहो इतवारसूं ॥ जन्मयोनि नानाभांति भवमें अनेकजाति देहके विधान जीव लहै जु विकारतूं ।
वेदका नियम आयु घटै बधै ताकी रीति दुजे अधिकार भाषी मुनीशा विचारसूं ॥२॥ ऐसे तत्त्वार्थका है अधिगम जामें ऐसा जो दशाध्यायरूप मोक्षशास्त्र ताकै विर्षे द्वितीय अध्याय संपूर्ण भया ।
वचनिका पान १४७
इति श्री परमपूज्य धर्मसाम्राज्यनायक योगींद्रचूडामणि, सिद्धातपारंगत, चारित्रचक्रवति श्री १०८ आचार्य श्रीशांतिसागरजी महाराजके आदेशसे ज्ञानदानके लिए श्री. प. पू. चा. च. आ. श्री १०८ शांतिसागर दिगंबर जैन जीर्णोद्धारक संस्थाकी ओरसे छपी हुई श्री तत्वार्थसूत्रकी श्रीमत्पूज्यपादाचार्य विरचित सर्वार्थसिद्धीकी पंडित जयचंदजीकृता टीका
वचनिकाविर्षे द्वितीय अध्याय संपूर्ण भया ॥२॥ ग्रंथ प्रकाशन समिति; फलटण वीर सं. २४८१