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वच
परमपूज्य चारित्रचक्रवर्ती आचार्यवर्य श्री १०८ शांतिसागर महाराजके आदेशसे श्री दिगंबर जैन जिनवाणी जीर्णोद्धारक सस्थाकी तरफसे ज्ञानदानके लिये छपी हुई ||
- श्रीवीतरागाय नमः सार्यसिदि|| वीर संवत् २४८१ ]
॥ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ [ प्रथ प्रकाशन समिति, फलटण || निका अथ तत्त्वार्थसूत्रकी सर्वार्थसिध्दिटीका वचनिका पंडित जयचंदजी कृता
दोहा- अधो मध्य ऊरधं सकल । जीवनिवास निवारि ॥ __कहे भव्य उपकारकू । नमू ताहि तन टारि ॥१॥
टीका
पान १४८
ऐसें मंगल अथि नमस्कार करि तीसरे अध्यायकी वचनिका लिखिये हैं। तहा सर्वार्थसिद्धि नामा टीकाविपैं। प्रारंभ है जो ' भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणां' इत्यादि सूत्रवि नारकजीव कहे। तहां शिष्य पूछ है, ते नारकी कौन हैं ?।। तिनिके प्रतिपादनके अर्थि प्रथम तो तिनिका आधारका निर्देश करै हैं । ते कहां वसैं हैं, तिनि पृथ्वीनिका नाम कहै हैं, ताका सूत्र॥रत्नशर्करावालुकापकधूमतमोमहातमःप्रभाभूमयो घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः
सप्ताधोऽधः ॥१॥ याका अर्थ- रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा पंकप्रभा धूमप्रभा तमःप्रभा महातमःप्रभा ए सात अधोलोकवि। नीचैनीचै तीन वातवलय और आकाशकै आधार पृथ्वी है ॥ इहां रत्नादिशब्दनिका द्वंद्वसमासकरि वृत्ति है तिनिकै प्रभाशब्द न्यारा जोडनां । बहुरि साहचर्यते तैसाही नाम है । तातै रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा पंकप्रभा धूमप्रभा तमःप्रभा महातमःप्रभा ऎसै नाम सिद्ध भये हैं । तहां भूमिका ग्रहण तौ आधारके जनावनेके अर्थि है। स्वर्गके पटलनिके जुदे जुदे विमान हैं तहां भूमिका आश्रय नाही, तैसें इहां नांही है। नारकीनिकै आवास भूमिके आश्रय हैं।