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पान
11 द्रव्यलिंग तौ नामकर्मके उदयतें भये ऐसे योनि तथा मेहन आदि आकारसहित होय है । वहुरि भाववेद नोकषाय नामा ।।
जो वेदकर्म ताके उदयतें आत्माका परिणाम है। तहां जावि गर्भधारण होय सो तो स्त्री है । बहुरि जो अपत्य कहिये पुत्रादिकळू उपजावै सो पुरुप है । बहुरि इनि दोऊ शक्तिनितें रहित होय सो नपुंसक है । बहुरि इनिकी संज्ञा है सो
रूढिशब्दरूप है । रूढिशब्दकी व्युत्पत्ति कीजिये है सो तिस व्युत्पत्तिमात्र प्रयोजनकै अर्थिही है । जैसें गऊ शब्दकी सर्वार्थ
वचसिद्धि निक्ति करिये, जो चालै ताकू गऊ कहिये । सो इहां निरुक्ति रूढिहीतें जाननी । जातें बैठा सोवता गऊळू भी गऊही
निका टीका कहिये । ऐसै मढि जाननी । जो ऐसे न मानिये तो गर्भधारणक्रियाही• प्रधान मानिये तो बालस्त्री तथा वृद्धस्त्री तीर्यचणी
मनुष्यणी तथा देवांगना तथा कार्मणकाययोगवि अंतरालमैं तिष्ठती स्त्रीनिकै गर्भधारण नाही, तब स्त्रीपणाका नाम न ठहरै। १४५ | तथा पुत्रादिक उपजाये विनां इनिका पुरुषपणाका नाम न ठहरै । तातै इहां नामविर्षे रूढीही प्रधान है । ऐसै ये तीन वेद शेप जे गर्भज तिनिकै होय हैं । इनिकी भाव अनुभवकी अपेक्षा ऐसै कहै है। स्त्रीका तो अंगारेकी अग्नि चिमक्याही करै तैसै है । बहुरि पुरुषका तृणकी अग्नि जैसे चिमकै तौ बहुत परंतु अल्पकालमैं बुझि जाय तैसें है । बहुरि नपुंसककै ईटनिका कजावाकी अग्नि जैसे प्रजल्याही करै, बुझे नाही, तैसें है ॥
आगें, जो ए जन्म योनि शरीर लिंगके संबंधकार सहित जे देवादिक प्राणी ते विचित्र पुण्यपापके वशीभूत च्यारी गतिवि शरीरनिकू धारते संते यथाकाल आयूकू पूर्णकरि अन्यशरीरकू धारै हैं कि विना आयु पूर्ण किया भी अन्यशरीरकू धारे हैं ? ऐसे पूछ उत्तर कहै हैं
॥ औपपादिकचरमोत्तमदेहासंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः ॥ ५३॥ __याका अर्थ- औपपादिक कहिये देव नारकी बहुरि चरमोत्तमदेह कहिये चरम शरीर जिनकै उत्तम देह बहुरि असंख्यातवर्षका जिनिका आयु ऐसै भोगभूमियां ए सर्व अनपवायु कहिये पूर्ण आयुकरि मरै हैं । इनिका आयु छिदै नाही ॥ औपपादिक तौ देवनारक पूर्व कहे तेही । बहुरि चरम शब्द है सो अंतका वाची है। याका विशेषण उत्तम | कहिये उत्कृष्ट है । ऐसा चरम उत्तम देह जिनिकै होय ते चरमोत्तमदेह कहिये । ऐसें कहते जिनकै तिसही जन्मते निर्वाण होना है ऐसे चरमशरीरी संसारका जिनिकै अंत भया ऐसे तद्भवमोक्षगामी हैं ऐसा अर्थ भया ॥ बहुरि असंख्येय कहिये संख्या रहित उपमाप्रमाण जे पल्यादिक तिनिकरि जान्या जाय ऐसै असंख्यात वर्षका जिनिका आयु ऐसै उत्तरकुरु आदि भोगभूमिविर्षे उपजै मनुष्यतिथंच ऐसे ए सर्व अनपवायुष्क हैं। विष शस्त्र आदिक बाह्यकारण तिनिके