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________________ निका । तिस स्वरूपते तो जुदा है नांही । ऐसेंही कोई शरीरकू और प्रकार भी कहै है । ते इनि पांच शरीरनिमें सर्व अंत- । भूत होय हैं । अन्य कछु है नाही। । आगें पूछे है, जो ऐसै शरीरनिकौं धारते संसारी जीव, तिनिकै गतिप्रति तीनूं वेदही होय हैं, कि कछु वेदनिका | नियम है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं वचसिद्धि टीका ॥ नारकसम्मूछिनो नपुंसकानि ॥ ५० ॥ याका अर्थ- नारकी जीव तथा संमूर्छन जीव ये नपुंसकलिंगीही होय हैं ॥ नारकी तो आगै कहसी । जे नरकनिवि उपजै ते नारक हैं । बहुरि संमूर्छन कहिये अवयवनिसहित शरीर जहा तहां उपजनां सो जिनके होय ते संमूर्छन कहिये । बहुरि चारित्रमोहनामा कर्मकी प्रकृति नोकषाय ताका भेद जे नपुंसकवेद ताका उदय बहुरि अशुभनामा कर्मके उदयतें स्त्री भी नांही पुरुप भी नांही ऐसै नपुंसक होय हैं ते नारक । बहुरि संमूर्छन नपुंसकही होय हैं । ऐसा नियम जाननां । तहां स्त्रीपुरुपसंबंधी मनोज्ञ शब्द गंध रूप रस स्पर्शके संबंधके निमित्तते होय । ऐसै तिनिके क्यों भी सुखकी मात्रा नांही है। आगें पूछे है, जो ऐसा नियम है तो अर्थतें ऐसा आया जो, कहे जे नारक संमूर्छन तिनितें अवशेष रहै, ते तीनूं वेदसहित हैं, यातें जहां नपुंसकलिंगका अत्यंतनिपेध है ताके प्रतिपत्तिकै अर्थि सूत्र कहै हैं ॥ ॥ न देवाः ॥ ५१॥ याका अर्थ- देव हे ते नपुंसकलिंगी नांही है ॥ स्त्रीसंबंधी तथा पुरुपसंबंधी जो उत्कृष्ट सुख है, शुभगति नामा कर्मके उदयतें भया ऐसा, सो देव अनुभव हैं भोगवै हैं। यातें तिनिवि नपुंसक नाही हैं । आगें पूछे है, अन्य जीव रहे तिनिके केते वेद हैं ? ऐसे पूछै सूत्र कहै हैं ॥ शेषास्त्रिवेदाः ॥ ५२ ॥ याका अर्थ- नारक संमूर्छन देव इनि सिवाय अवशेप रहे जे गर्भज तिर्यंच तथा मनुष्य, ते तीनूं वेदसहित हैं ॥ तीन हैं वेद जिनिकै ते त्रिवेद कहिये । ते वेद कैसै ? स्त्री पुरुप नपुंसक । इहां पूछ है, तिनि वेदनिका अर्थ कहा ? | तहा कहै हैं, जो वेदिये ताकू वेद कहिये । ताका लिंग ऐसा अर्थ है । सो दोय प्रकार है द्रव्यलिंग भावलिंग । तहां *
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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