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सर्वार्थसिद्धि टीका
निका
आगें, ते औदारिकादि ५ शरीर सर्वसंसारी जीवनिकै अविशेषकर होय है, तहां सर्व एकही काल होय है ऐसा प्रसंग होते जे गरीर एकजीवकै एककाल संभवै तिनिके दिखावनेके अर्थि सूत्र कहै हैं
॥ तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्व्यः ॥ ४३ ॥ याका अर्थ- तिनि तैजस कार्मण दोऊनिकू आदिकरि एक जीवकै एककालविर्षे दोय भी होय, तीन भी होय, 12 च्यारिताई होय ऐसें भाज्यरूप करनां । पांच न होय । यह तत् शब्द है सो प्रकरण जिनका है ऐसे तैजस कार्मणके ग्रहणके अर्थि है । ते है आदि जिनिके ते तदादि कहिये । बहुरि भाज्य कहिये विकल्परूप विभागरूप करने । ते कहां ताई ? च्यारीताई करने । तातें ऐसा अर्थ भया, जो एककाल एकजीवकै कोईकै तौ तैजस कार्मण दोयही होय, ते तो अंतरालमै विग्रहगतिमें जानने । बहुरि कोई जीवकै औदारिक तैजस कार्मण ए तीन होय, ते. मनुष्यतिर्यंचकै जानने । बहुरि कोई जीवकै वैक्रियिक तैजस कार्मण ए तीन होय, ते देवनारकीनिकै जानने । बहुरि कोई जीवकै औदारिक आहारक तैजस कार्मण ए च्यारि होय, ते प्रमत्त गुणस्थानवर्ती मुनिके जानने । ऐसै भाज्यरूप जानने ॥ __ आगें, फेरि तिनहीवि विशेषकी प्रतिपत्तिकै आर्थ सूत्र कहै हैं
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॥निरुपभोगमन्त्यम् ॥४४॥ याका अर्थ--अंतका कार्मण शरीर उपभोगरहित है ॥ अंतविर्षे होय ता• अंत्य कहिये । सो इहां सूत्रपाठमैं अंतविर्षे कार्मण कह्या है सो अंत्य है । बहुरि इंद्रिय द्वारिकरि शब्दादिकका ग्रहण सो उपभोग है । तिसका जाकै अभाव सो निरुपभोग है । सो ऐसा कार्मणशरीर है । जातें विग्रहगति अंतरालवि इंद्रियनिकी क्षयोपशमरूप लब्धि होते भी द्रव्येंद्रियकी निवृत्तिका अभाव है । ताते शब्दादिका उपभोगका तहां अभाव है । इहां कोई तर्क करै है, जो, तैजस भी निरुपभोग है, कार्मणही निरुपभोग कैसे कह्या ? ताका समाधान, तैजसशरीरका इहां उपभोगके विचारवि अधिकार नाही । जाते याकू योगनिमित्त भी नांही कह्या है, ऐसें जाननां ॥
आगें पूछे है, जो, तीन प्रकार जन्म कहै तिनिविर्षे ए शरीर उपजै है, सो तीनही जन्मविर्षे अविशेषकर उपजे है, कि कछु विशेष है ? तहां कहे हैं, विशेष है, ताका सूत्र कहै हैं