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॥ अप्रतिघाते ॥४०॥ याका अर्थ--- तैजस कार्मण ए दोऊ शरीर अप्रतिघाते कहिये रुकनेते रहित हैं ॥ मूर्तिक करि रुकना ताळू प्रतिघात कहिये । सो जहां नांही सो अप्रतिघात है । सो तैजस कार्मण ए दोऊ अप्रतिघात हैं । जाते ए सूक्ष्म परिणमनरूप हैं । जैसे लोहका पिंडमैं अग्नि प्रवेश करै तैसैं ए वज्रपटलवि भी प्रवेश कर जाय रुकै नांही । इहां कोई कहै, वैक्रियिक आहारक भी काहूकरि रुकै नांही ते भी ऐसे क्यों न कहै १ ताका समाधान, जो, इहां सर्वक्षेत्रवि नाही रुकनेकी विवक्षा है। जैसे तैजस कार्मणका सर्वलोकवि अप्रतिघात है, तैसे वैक्रियिक आहारकका नाही है। इनिका गमन प्रसनाडीमांही है। सिवाय प्रतिघातही है ॥ __ आगें पूछे है, कि, इनि दोऊ शरीरनिका एताही विशेप है कि कछु और भी है ? ऐसे पूछे विशेष है, ताका सूत्र कहै हैं
॥ अनादिसम्बन्धे च ॥ ४१ ॥ याका अर्थ- ए दोऊ शरीर अनादित संबंधरूप हैं। और शरीर छुटि नवीन बणै है तैसें ये नांही हैं ॥ इहां च शब्द है सो विकल्प अर्थविप है जाते ऐसा अर्थ भया, अनादिसंबंध भी है सादि संबंध भी है। तहा कार्यकारणका अनादिसंतानकी अपेक्षा तो अनादिसंबंधरूप है । बहुरि विशेपकी अपेक्षा सादिसंबंध है । सो बीजवृक्षकी
ज्यों जानने । जैसे औदारिक वैक्रियिक आहारक जीवकै कदाचित् होय है, तैसें तैजसकार्मण नाही है । ये नित्यसंबंध| रूप है । संसारके क्षयपर्यंत संबंध रहै है । जिनिके मतमें शरीर अनादिसंबंधही है तथा सादिसंबंधही है ऐसा पक्ष
पात है तिनिकै अनादिसंबंध है। तहां अंत नाही । तब मुक्त आत्माका अभावका प्रसंग भया । बहुरि सादिसंबंध होते | शरीर नवीन भये । पहली आत्मा शुद्ध ठहया; तव नवीन शरीरका धारण काहेते भया ? ऐसै दोष आवै है॥
आगें पूछे है, ए तैजस कार्मण शरीर कोईक प्राणीकै होय है कि अविशेप है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं
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। ॥ सर्वस्य ॥ ४२ ॥ याका अर्थ- ए दोऊ शरीर सर्व संसारी जीवनिकै हो हैं ॥ इहां सर्व शब्द निरवशेषवाची है। समस्त संसारी
- गरीर हैं॥