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________________ वच सर्वार्थ- सिद्धि टीका अ. आगै, इस नव योनिसंकटविर्षे तीन प्रकार जन्म लेते जे सर्व संसारी प्राणी, तिनिके जन्मका नियमकै अर्थि सूत्र कहे हैं- 11 ॥ जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः ॥ ३३ ॥ याका अर्थ- जरायुज अंडज पोत ए तीन प्रकारके प्राणीनिकै जन्म गर्भही है ॥ तहां जो जालवत् परिवरण कहिये जारित वेष्टया होय बहुरि जाविर्षे मांस लोही फिरि रह्या होय सो तो 'जरायु कहिये । तिसिविर्षे जो उपजै सो जरायुज । निका कहिये । बहुरि नख ऊपरिकी त्वचा सारिखा होय ऊपरि कठिण करडा होय त्वचामांही लोहीकरि वेष्टित होय गोला पान कारसा होय सो अंड है । ताविर्षे उपजै ताकू अंडज कहिये । बहुरि जो ऊपरि वेढ्याविनाही होय सो योनिः निसर-1/१३७ ताई संपूर्ण अवयव शरीरसहित चलनादिककी सामर्थ्यसहित होय सो पोत कहिये । ए तीनूंही गर्भयोनि कहिये ॥ आगै पूछ है, जो जरायुज अंडज पोत जीवनिकै तौ गर्भते उपजनेका नियम कह्या । अब उपपाद जन्म कौनके होय है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं ॥ देवनारकाणामुपपादः ॥ ३४ ॥ याका अर्थ- देवनारकी जीवनिकै उपपाद जन्म है ॥ देवनिकै बहुरि नारकीनिकै उपपादजन्म जाननां । औरजन्म नांही है ऐसा नियम जाननां ॥ आगै पूछ है, इनि सिवाय अन्य जीवनिकै कौनसा जन्म है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं ००० ॥ शेषाणां सम्मूर्च्छनम् ॥ ३५॥ __याका अर्थ-- गर्भजन्म अरु देव नारकीसिवाय अन्य जीव रहे तिनिकै सम्मूर्च्छन जन्म है ॥ गर्भज बहुरि औपपादिक जीवनिविनां अवशेप अन्य जीव रहे तिनिकै सम्मूर्च्छन जन्म है । ऐसें ए तीनही सूत्र नियमकै आर्थि हैं । दोनू तरफा नियम इनिकै जाननां । कैसे ? जरायुज अंडज पोतनिकैही गर्भजन्म है । अथवा इनिके गर्भही जन्म है ।। अन्य नाही । बहुरि देव नारकीनिकैही उपपाद जन्म है। अथवा इनिकै उपपाद जन्मही है। अन्य नांही । बहुरि अवशेष जीवनिकैही सम्मूर्छन जन्म है । अथवा इनिकै संमूर्च्छन जन्मही है अन्य नाही । ऐसें दोऊ तरह नियम जाननां ॥ ऐसें पांच सूत्रनिकरि जन्म अरु तिनि जन्मसहित जीवनिका निरूपण किया ॥ 1*
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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