________________
*99
सर्वार्थ
निका
पान
म. २0
जो चशब्द न होय तौ सचित्तादिक कहे तिनिकाही विशेषण मिश्र शब्द ठहरै तातें मिश्र भी योनि है ऐसा समुच्चय । चशब्द करै है । बहुरि एकश ऐसा गब्द है सो वीप्सा कहिये फेरि फेरि ग्रहणके अर्थमैं है । सो मिश्रका ग्रहण तीनूं
जायगा अनुक्रमरूप लेनां जनावै है । तातें ऐसा जान्या जाय है जो सचित्त, अचित्त, मिश्र, गीत, उष्ण, मिश्र, संवृत, विवृत, मिश्र ॥ बहुरि ऐसे मति जानु, जो, सचित्त शीत याका मिश्र इत्यादि । बहुरि सूत्रमैं तत् शब्द है सो ये योनि
वचसिद्धि । जन्मके प्रकार है ऐसा जनावने है । ए नव योनि तीन प्रकार जन्म कहै तिनिहीके प्रकार है ऐसें जाननां । टीका
1 इहां कोई कहै है, योनि अझ जन्मविपें भेद नाही- अविशेप है । ताका समाधान- आधार आधेयके भेदतें भेद १। है । इहां योनि तौ आधार है जन्मके प्रकार हैं ते आधेय हैं । जातें सचित्त आदि योनिकै आधार आत्मा संमूर्छनादि १३६
जन्मकरि गरीर आहार इंद्रियादिककै योग्य पुद्गलनिकं ग्रहण करै है। तहा देवनारकोनिकी तौ अचित्तयोनि है। जाते। इनिके उपजनेके ठिकाणे हैं ते पुद्गलके स्कंध अचित्त हैं । बहुरि गर्भज प्राणी है तिनिकी मिश्र योनि है । जाते इनिकै उपजनेके ठिकाणे माताके उदरवि वीर्यलोही तौ पुद्गल है, सो अचित्त कहिये । बहुरि माताका आत्मा चित्तवान् है ।
ताते तिसकरि मिश्र कहिये । वहुरि संमूर्छन प्राणी हैं ते तीनही प्रकारके योनिमै उपजे हैं। केई तौ सचित्तयोनिविर्षे उपजै ३ हैं। जैसै असाधारण शरीरवाले जीवनिकै एकही शरीरमैं बहुत जीव हैं। तातें परस्पर आश्रयतें सचित्त हैं । केई अचित्त
योनिवि उपजै हैं । तिनिके उपजनेके ठिकाणे पुद्गलस्कंधही हैं । केई मिश्रयोनि है ॥ । बहुरि देवनारकीनिकै तौ शीतोष्णयोनि है । तिनिके उपजनेके ठिकाणे केई तो शीत हैं केई उष्ण हैं । बहुरि तैज| सकायके जीवनिकी योनि उष्णही है । अन्यप्राणी केई शीतयोनिमें उपजै हैं केई उष्णमैं उपजै हैं केई मिश्रमै उपजै हैं । बहुरि देव नारकी एकेंद्रिय जीव इनिकी योनि तौ संवृत है । देवनारकी तौ संपुटमैं उपजै हैं । एकेंद्रिय जीव भी ढकी
योनिमेंही उपजै हैं । बहुरि विकलत्रय विवृतयोनिवि उपजै हैं ॥ बहुरि गर्भज मिश्रयोनिवि उपजै हैं । केई प्रदेश गूढ १ है केई प्रदेश उघडता हैं । इनिके भेद चवराशी लाख हैं सो आगमवि4 कह्या है । ताकी एक गाथा है ताका अर्थनित्य निगोद इतर निगोद बहुरि धातु कहिये पृथिवी आप तेज वायु ऐसे छह तो सात सात लाख हैं । ताके बियालीस लाख भये । बहुरि तरु कहिये वनस्पति सो दस लाख हैं । ऐसें एकेंद्रियकै तो वावन लाख भये। बहुरि विकलत्रय वेंद्रिय दोय लाख, तेंद्रिय दोय लाख, चौइंद्रिय दोय लाख ऐसे छह लाख । बहुरि देव च्यारि लाख, नारकी च्यारि लाख, पंचेंद्रियतिर्यंच च्यारि लाख, मनुष्य चौदह लाख ऐसे पंचेंद्रियके छवीस लाख । सब मिली चवराशी लाख भये। इनिका विशेपस्वरूप प्रत्यक्षज्ञानीनिकै गम्य है ॥