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आगें पूछे है, तिनि संसारी जीवनिकै तीन जन्म कहे तथा अनेक भेदनिसहित नवयोनि कहे । तिनिकै शुभ | 11 अशुभ कर्मका उदयकरि निपजाये बहार बंधके फलके भोगनेके आधार शरीर कौन कौन है ? ऐसे पूछे सूत्र कहै
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सर्वार्थ
निका
पान
॥ औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ॥ ३६ ॥
वचयाका अर्थ- औदारिक वैक्रियिक आहारक तैजस कार्मण ए पांच शरीर कर्मफल भोगनेकै आधार हैं ॥ विशिष्टनामकर्म कहिये शरीरनामा नामकर्म ताकै उदयतें भये ऐसे, शीर्यते कहिये गलै शिडै झडै ते शरीर हैं । शरीर Re नामा नामकर्मकी प्रकृति औदारिकादिक हैं तिनिके उदयतें औदारिकादिककी प्रवृत्ति पाईये है । ताते ते पांच नाम हैं। तहां उदार नाम स्थूलका है । बडा दीखै ताकू उदार कहिये सो उदारविर्यै भया होय सो अथवा उदार है प्रयोजन | जाका ताकू औदारिक कहिये । वहुरि अणिमादिक आठ गुण तिनिका ईश्वरपणाका योगते एक अनेक छोटा बडा शरीर | अनेकप्रकार करणां सो विक्रिया कहिये । सोही है प्रयोजन जाका ताकू वैक्रियिक कहिये । बहुरि सूक्ष्म पदार्थका निर्णयके अर्थि तथा असंयमके दूर करनेकी इच्छा करि प्रमत्त गुणस्थानवर्ती मुनिकरि रचिये सो आहारक है । वहुरि तेजका कारण अन्य देहळू दीप्तिरूप करनेको निमित्त तथा तेजके विपें भया सो तैजस है । बहुरि कर्मनिका कार्य सो कार्मण है । कर्मके कार्य सर्वही शरीर है परंतु रूढीके वशतें विशेपपणांकरि कार्मणहीकू कर्मका कार्यरूप निरुक्ति करी है । इहां का कोई पूछ, अन्य गरीरकू कार्मण निमित्त है बहुरि कार्मणकू कहा निमित्त है ? ताका समाधान, जो, कार्मणकू कार्म
निमित्त है । अथवा जीवके परिणाम मिथ्यादर्शनादिक निमित्त हैं ॥ 1 आगै जैसे औदारिककी इंद्रियनिकरि उपलब्धि है यह इंद्रियनिकरि ग्रहण होय है तैसें अन्यशरीरका ग्रहण काहेतें 12 न होय है ? ऐसे पूछ सूत्र कहे हैं
॥ परं परं सूक्ष्मम् ॥ ३७॥ याका अर्थ- औदारिकतें अगिले अगिले शरीर सूक्ष्म हैं ॥ इहां परशब्दका अनेक अर्थ है । तो भी विवक्षातें व्यवस्थार्थके वि गति है । बहुरि वीप्सा कहिये दोयवार परशब्द कह्या सो औदारिक तौ स्थूल है, यातें सूक्ष्म वैक्रियिक है, याने सूक्ष्म आहारक है, यात सूक्ष्म कार्मण है, ऐसें जाननेके आर्थि है।
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