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________________ सूंघना सो गंध है । वर्णना सो वर्ण है। शब्द होना सो शब्द है। बहुरि इनिका अनुक्रम इंद्रियनिकै अनुक्रमतें कह्या है। २. आगें कहै हैं, जो मन अनवस्थित है तातें यहू इंद्रिय नाही । ऐसें याकै इंद्रियपणां निषेध्या है । सो कहा यह मन उपयोगका उपकारी है की नाही है ? तहां कह्या जो उपकारी है मनविनां इंद्रियनिकै विषयनिवि विशिष्ट अपने प्रयोजनरूप प्रवृत्ति नाही होय है । तब पूछ है, मनकै अर इंद्रियनिकै सहकारी मात्रही प्रयोजन है कि कछू और भी। सर्वार्थ व च1 प्रयोजन है ? ऐसे पूछै मनका प्रयोजन दिखावनेकू सूत्र कहै हैंसिद्धि निका टीका पान म.२ ॥श्रुतमनिन्द्रियस्य ॥ २१ ॥ याका अर्थ-- अनिद्रिय कहिये मन ताका श्रुत कहिये इरुतज्ञानगोचर पदार्थ है सो विषय है प्रयोजन है ॥ श्रुतज्ञानका विषय जो अर्थ ता· श्रुत कहिये । सो अनिद्रिय कहिये मन ताका विपय है । जातें पाया है इरुतज्ञानावरण कर्मका क्षयोपशम जानै ऐसा जो आत्मा ताकै सुणै पदार्थविर्षे मनका अवलंबन स्वरूप ज्ञानकी प्रवृत्ति है । अथवा श्रुतज्ञानकं भी इरुत कहिये है । सो यह ज्ञान अनिद्रियका अर्थ कहिये प्रयोजन है । यहु प्रयोजन मनकै स्वाधीनही साध्यरूप है । इंद्रियनिका आधीनपणां यामैं नाही है । इहां कोई कहै सुननां तौ श्रोत्र इंद्रियका विषय है । ताका ।। समाधान, जो सुननां तौ श्रोत्र इंद्रियका विषय है सो तो मतिज्ञान है तिस पिछै जीवादि पदार्थ विचारिये सो श्रुतज्ञान है। सो मनहीका विषय है। ॥ आगें, न्यारे न्यारे विषय जिनके ऐसे कहे जे इंद्रिय, तिनिके स्वामीपणांका निर्देश किया चाहिये । तहां पहली कह्या जो स्पर्शन इंद्रिय ताका स्वामीपणांके नियमकै अर्थि सूत्र कहै हैं ॥ वनस्पत्यन्तानामेकम् ॥ २२ ॥ ___ याका अर्थ- वनस्पति है अंत जिनिकै ऐसे जे पूर्वोक्त पृथिवी अप् तेज वायु वनस्पति तिनिकै एक कहिये एक स्पर्शन इंद्रिय । है ॥ एक कहिये पहला स्पर्शन इंद्रिय सो पृथिवीतें लगाय वनस्पतिपर्यंत जीवनिकै जाननां । तिस स्पर्शन इंद्रियका उत्पत्तिकारण : कहिये है । वीर्यातराय स्पर्शन इंद्रियावरणनामा ज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशम होते बहुरि अवशेष इंद्रियज्ञानावरणकर्मका सर्वघातिस्पर्द्धकनिका उदय होतें बहुरि शरीरनामा नामकर्मके उदयके लाभका अवलंबन होते एकेंद्रियजाति नामकर्मके उदयके वशवर्तिपणां होते जीवकै एक स्पर्शन इंद्रिय प्रकट होय है । तातें स्पर्शन इंद्रियके स्वामी पांच स्थावरकायके जीव है । ऐसें जाननां ॥
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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