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सर्वार्थ
निका
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॥ स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि ॥ १९ ॥ याका अर्थ- स्पर्शन रसन घ्राण चक्षु श्रोत्र ए पांच इंद्रियनिके नाम हैं ॥ इनिके नामनिका निरुक्ति अर्थ कहिये । | है । लोकविपें इंद्रियनिकै पराधीन विवक्षा देखिये है । जैसे लोक कहै है मै इनि नेत्रनिकरि नीकै देखू हूं। तथा मै इनि
विचया काननिकरि भलै सुY हूं । ताते परतंत्रपणात स्पर्शनादिककै करण अर्थपणां है सोही कहिये है। वीर्यातराय मतिज्ञानावरण सिद्धि
कर्मका क्षयोपशम बहुरि अंगोपांगनामा नामकर्मके उदयके लाभके आलंबनते आत्मा जाकरि विपयकू स्पर्शे ताकू स्पर्शन || पान कहिये । ऐसेंही जाकर अपने विपयकू आस्वादै ताळू रसन कहिये । ऐसैंही जाकरि सूंघे ताकू घ्राण कहिये । ऐसेंही जाकरि देखै ताकू चक्षु कहिये । ऐसेंही जाकरि सुणे ताकू श्रोत्र कहिये । बहुरि लोकवि स्वतंत्र कहिये स्वाधीन विवक्षा भी है । जैसै लोक कहै है ए मेरे नेत्र नीकै देखै हैं । ए मेरे कान नीकै सुणै हैं इत्यादि । तातें स्वतंत्र अर्थ कीजिये तव कर्ता अर्थ भी होय है । जैसे जो विपयकू स्पर्शे सो स्पर्शन कहिये । ऐसेंही जो आस्वादै ताकू रसन कहिये । सूंधै ताकू घ्राण कहिये । देखै ताकू चक्षु कहिये । सुणै ताळू श्रोत्र कहिये । इनिका सूत्रमैं संज्ञाका अनुक्रम है । सो एकेंद्रि
यादि जीवनिकै एक एक वधै ताका अनुक्रम जनावनेके अर्थि है सो आगै कहसी ॥ इहां विशेप, जो, स्पर्शनका 2 आदिवि ग्रहण किया है। जातें यह शरीरव्यापी है। रसन घ्राण चक्षु अल्पव्यापी है। बहरि
जाते यहु बहु उपकारी है । धर्मश्रवणादि उपकार याते प्रधानताकरि है । बहुरि इनि इंद्रियनिकेवि परस्पर भेद भी है । जाते अपने अपने विपयकू ग्रहण करै हैं । बहुरि अभेद भी है । जातै भाव इंद्रिय तौ एक आत्माहीका परिणाम है । द्रव्यइंद्रिय एक पुद्गलका परिणाम है। __ आगें इनि इंद्रियनिके विपय दिखावनेकै आर्थि सूत्र कहै हैं
॥ स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तदर्थाः ॥ २० ॥ याका अर्थ- स्पर्श रस गंध वर्ण शब्द ये पंचेंद्रियनिके पांच विपय हैं ॥ इहां स्पर्शादिशब्दनिकै द्रव्यपर्यायकी प्रधानविवक्षावि कर्मसाधन तथा भावसाधन जानना । तहां द्रव्यप्रधान विवक्षावि तौ कर्मसाधन है । जो स्पर्शिये ताकू स्पर्श कहिये । आस्वादिये ताकू रस कहिये । सूंधिये ताकू गंध कहिये । वर्णिये ताकू वर्ण कहिये । जो शब्दरूप होय ताकू शब्द कहिये । बहुरि पर्यायकी प्रधानविवक्षावि भावसाधन है । स्पर्शना सो स्पर्श है । रसना सो रस है।