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वच
पान
॥ निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् ॥ १७ ॥ ___ याका अर्थ-- निर्वृति उपकरण ऐसै दोय प्रकार द्रव्येंद्रिय है ॥ तहां जो कर्मकरि रची होय ताकू निर्वृति कहिये।।
सो दोय प्रकार है । बाह्य निवृति अभ्यंतर निवृति । तहां जो उत्सेध अंगुलकै असंख्यातवै भाग परिमाण शुद्ध जे सर्वार्थ
THI अत्माके प्रदेश, ते न्यारे न्यारे नेत्र आदि इंद्रियनिके आकारकरि अवस्थित होय तिनिकी वृत्ति सो तौ अभ्यंतरनिवृति सिद्धि
निका | है । बहुरि तिनि आत्माके प्रदेशनिविर्षे इंद्रिय है नाम जिनिके ऐसै जे न्यारे न्यारे आकार नामकर्मके उदयकरि निपजाये है अवस्थाविशेष जिनिकै ऐसे ते पुद्गलके संचय समूह सो बाह्य निर्वृति है । बहुरि जो निर्वृतीका उपकार करै सो उप- १२७ करण भी दोय प्रकार है । अभ्यंतर उपकरण बाह्य उपकरण । तहां काला धौला जो नेत्रनिविर्षे मंडल गोलाकार आदि । है सो तो अभ्यंतर है । बहरि वांफणी तथा नेत्र जाकै ढकै ऐसे डोला इत्यादि बाह्य उपकरण है । तैसेही अन्य इंद्रियके जानने ॥ __ आगें भावेंद्रियकू कहिये हैं। ताका सूत्र -
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॥ लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम् ॥ १८॥ ___ याका अर्थ-- लब्धि उपयोग ए दोऊ भाव इंद्रिय हैं ॥ तहां ज्ञानावरणके क्षयोपशमके विशेषकी प्राप्ति सो लब्धि। हैं । बहुरि जाके निकट होतें आत्मा द्रव्य इंद्रियरूप निर्वृतिव्यापार करै प्रवतै ऐसा जो, लब्धि जाकू निमित्त होय ऐसा जो आत्माका परिणाम सो उपयोग है । भावार्थ जो ज्ञेयके आकार परिणमनरूप ज्ञान होय सो उपयोग कहिये ऐसै ए दोऊ भावेंद्रिय हैं । इहां कोई पूछ है, जो, उपयोग तौ इंद्रियका फल है ताकू इंद्रिय कैसै कहिये ? ताका समाधान, जो कारणका धर्म होय ताकू कार्यवि भी देखिये है । ऐसै घटकै आकार परिणम्या ज्ञानकू घट ऐसा कहिये ऐसै है । बहुरि इंद्रियशब्दका स्वार्थ है सो भी उपयोगविर्षे मुख्य है तातें भी इंद्रिय कहिये । जैसैं इंद्र कहिये आत्मा ताका लिंग होय ताक़ इंद्रिय कहिये, सो यह भी अर्थ उपयोगविर्षे मुख्यपणे हैं । जातें ऐसा कह्या है, जो, उपयोगलक्षण जीव है। सो यातें उपयोग● इंद्रिय कहना न्याय्य है ॥
आगें कहे जे इंद्रिय तिनिकी संज्ञा तथा अनुक्रम प्रतिपादनेके अर्थि सूत्र कहै हैं