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सर्वार्थ
१. शरा-
A पान
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वायुजीव । वनस्पति, वनस्पतिकाय, वनस्पतिकायिक, वनस्पतिजीव ऐसें । तहां अचेतनपुद्गल अपने स्वभावहीतें कठिणता R| आदि गुणसहित है ताकू तौ पृथिवी कहिये । जाते अचेतनपणांत पृथिवीकाय नामकर्म प्रकृतिके उदयविना भी पृथनक्रिया
जो फैलाना आदि क्रिया ताकरि सहित पृथिवी हैही । अथवा दूसरा अर्थ यहु, जो, जामैं अगिले तीनूं भेद पाइये ऐसा सामान्यकू भी पृथिवी कहिये । बहुरि पृथिवीकायिक जीव जामैं था सो मूवा ताका शरीर रह्या ताकू पृथिवीकाय;
वचकहिये । जैसे मूवा मनुष्यका काय होय तैसें । बहुरि पृथिवीकाय जाकै होय ऐसा जीव ताकू पृथिवीकायिक कहिये । निका टी का । सो यहु, पृथिवी शरीरके संबंधसहित है । बहुरि पृथिवीकायनामा नामकर्मकी प्रकृतिका जाकै उदय आया अन्यकायके शरी
। रतैं छुट्या जातें पृथिवीकाय शरीर नांही ग्रहण किया जाते अंतरालमैं कार्मणयोगमैं तिष्टै तातें ताकू पृथिवीजीव कहिये । ऐसेंही अप्कायादिकवि अर्थ लगा लेणां ॥ ए पांच स्थावरजीव हैं । तिनिकै प्राण च्यारि । स्पर्शनेंद्रियप्राण, कायबलप्राण, उच्छ्वासनिश्वासप्राण, आयुप्राण ऐसें ॥ इहां विशेप जो, केवलज्ञानतें लगाय अनादिकर्मसंयोगते घटतें घटते ज्ञानका अपकर्ष करिये तब सूक्ष्मज्ञान एकेंद्रियनिकै रहै है । इहां प्रश्न, जो, घटतें घटते जडही क्यों न रह्या ? ताकू कहिये घटना तो आपहीवि कहिये । जड तौ अन्य द्रव्य है । जाते प्रध्वंसाभाव सत्त्वहीकै कहिये । बहुरि सत्त्वका अत्यंत अभाव भी युक्त नांही। कोई कहै, कर्मका अत्यंत अभाव कैसे है ? ताकं कहिये कर्मरूप पुद्गल भये थे तिनिका कर्मभावका नाश, होय पुद्गलपरमाणूनिका तौ अभाव न भया । ऐसें एकेंद्रियनिवि ज्ञानका परम अपकर्ष निश्चय कीजिये । तातें स्थावरजीवनिका सद्भाव युक्त है ॥
आगें, कहै हैं, जो, त्रसजीव कोन हैं ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं
॥ द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः ॥ १४ ॥ याका अर्थ- द्वींद्रियजीवने आदि देकरि तेइंद्रिय चौइंद्रिय पंचेंद्रिय ऐसे त्रसजीव है ॥ दोय हैं इंद्रिय जाकै ताक्रू वींद्रिय कहिये । बहुरि द्वींद्रिय हैं आदि जिनिकै ते द्वींद्रियादिक कहिये । इहां आदिशब्द है सो आगमविर्षे इनिकी व्यवस्था है, ताका वाचक कहिये हैं । हीद्रिय श्रींद्रिय चतुरिंद्रिय पंचेंद्रिय ऐसैं । इहां तद्गुणसंविज्ञान समासका ग्रहण है । तातें द्वींद्रियका भी ग्रहण करनां । जाते या समासमें आदिका भी पदार्थ ग्रहण हो है । बहुरि पूछे हैं, इनिके प्राण केते केते हैं ? तहां कहिये है । द्वींद्रियके छह प्राण हैं । च्यारि तौ एकेंद्रियकै पहलै कहे तेही लेणे । बहुरि रसना इंद्रिय बहुरि वचनबल ये दोय अधिक किये छह भये । बहुरि त्रींद्रियकै घ्राण इंद्रियकर अधिक सात प्राण है । बहुरि