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सर्वार्थ-श
वच
निका
टीका अ २
पान १२४
तहां बस नामा नामकर्मकी प्रकृतिके उदयके वशतें भये ते त्रस है। बहुरि स्थावरनामा नामकर्मकी प्रकृतिके उदयके वगते भये ते स्थावर है । इहां कोई कहैं; इनि शब्दनिका अर्थ तो ऐसा है, पीडित होय भयसहित होय भागै चालै ते त्रस, बहुरि तिष्ठनेहीका स्वभाव जिनिका होय ते स्थावर सो ऐसा अर्थही क्यों न कहौ ? ताका समाधान ऐसा कहै आगमते विरोध आव है । आगमविपें ऐसा कह्या हैं, कायानुवादवि जो बस नाम द्वींद्रियतें लगाय सयोगकेवलीपर्यंत है । तातें चलने न चलनेकी अपेक्षातें त्रस स्थावरपणां नाहीं है । कर्मोदयकी अपेक्षाहीतें है । बहुरि इस सूत्रमै त्रसका ग्रहण आदिवि किया है सो याकै अक्षर अल्प है तथा पूज्य प्रधान है तातें पूज्यपणा सर्व उपयोग याकै संभवै है ताकी अपेक्षा है ॥
इहां विशेप, जो, चलनेहीकी अपेक्षा त्रस कहिये तो पवनादिक त्रस ठहरै, गर्भादिकविपै स्थावरही ठहरै। बहरि तिष्ठनेहीकी अपेक्षा स्थावर कहिये तो पवनादिक स्थावर न ठहरै, तातें कर्मोदयकी अपेक्षाही युक्त है। बहुरि सर्वजीवनिकू स्थावरही कहिये इस न कहिये । जाते जीव क्रियाते रहित सर्वगति है तो जीवनतत्त्वके नाना भेद न ठहरै । तातें | क्रियासहित कथंचित् असर्वगतिहि माननां । बहुरि सर्वजीवनिकू त्रसहि मानिये स्थावर न मानिये तौ वनस्पतिकायिकादिक जीव न ठहरै । जाते चलतेवूही जीव कहे तब सूता मूछित अंडे तिष्ठता भी जीव न ठहरै । जो कहै तिनिका आकारविशेप है तातै जीव है तो ऐसे वनस्पतिके भी जलादि आहार पावने न पावनेतें हरित होना सूकी जाना ऐसे लक्षणतें जानिये ए जीव हैं । तातें स्थावर त्रस दोऊही भेद माननां युक्त है ॥
आगैं, उसका भेद पहली कहना अनुक्रम है, ताळू उल्लंधिकरि एकेंद्रियस्थावरके भेद प्रतिपत्तिके आर्थि सूत्र कहै है। २ जात एकेंद्रियके भेद बहुत नाही कहने है । तातै तिनिकं पहली कहि जाय है
॥ पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः ॥ १३ ॥ याका अर्थ- पृथिवी अप् तेज वायु वनस्पति ए पांच स्थावर जीव हैं ॥ स्थावर नामा नामकर्मकी प्रकृतिके भेद पृथिवीकायिकादि कहे है। ताके उदयके निमित्तते जीवनिकै पृथिवीकायिकादिक संज्ञा जाननी । इनिके शब्द पृथनादिक धातुनितें निपजै हैं । तो भी रूढिके वशते पृथनादिक कहिये विस्तारादिक अर्थकी इहा अपेक्षा न करणी । इनि पृथिवी
आदिके आप कहिये ऋपिनिके आगमवि च्यारि च्यारि भेद कहे हैं । सोही कहिये पृथिवी, पृथिवीकाय, पृथिवीकायिक, A पृथिवीजीव । अप्, अप्काय, अप्कायिक, अप्जीव । तेज, तेजकाय, तेजकायिक, तेजजीव । वायु, वा