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जाननां । इहां ऊक्तं च गाथा है ताका अर्थ- मिथ्यात्वकरि जीव या भावसंसारविर्षे भ्रमता सर्व प्रकृति स्थिति अनु-16 भाग प्रदेशबंधके जेते स्थान हैं ते सर्वही पाये । ऐसें पंचप्रकार संसारतें जे जीव रहित भये सिद्ध भये ते मुक्तजीव |
कहिये । इहां संसारीनिका पहलै ग्रहण किया है । जाते मुक्तका नाम संसारपूर्वक है । तथा संसारीनिके भेद बहुत हैं । १ तथा संसारी जीव अनुभवगोचर हैं । मुक्त अत्यंतपरोक्ष है । ऐसा भी हेतु” संसारीनिका पहलै ग्रहण किया है।
आगे कहै हैं, जो, ए संसारी जीव हैं ते दोय प्रकार हैं ताका सूत्र
सार्थ
सिद्धि
वचनि का
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॥समनस्कामनस्काः ॥११॥ याका अर्थ- संसारी जीव हैं ते समनस्क कहिये मनसहित अमनस्क कहिये मनरहित ऐसे दोय प्रकार हैं ॥ तहां मन दोय प्रकार है; द्रव्यमन, भावमन । तहां पुद्गलविपाकी कर्मप्रकृतिके उदयकी है अपेक्षा जाकू ऐसा हृदयस्थानवि फूले कमलके आकार सूक्ष्म पुगलका प्रचयरूप तिष्ठै है सो तौ द्रव्यमन है । बहुरि वीर्यातराय तथा नोइंद्रियावरणनामा || ज्ञानावरणीय कर्मके क्षयोपशमकी है अपेक्षा जाकै ऐसै आत्माकै विशुद्धि सो भावमन है । तिस मनकरि सहित होय
ते तौ समनस्क हैं । बहुरि जिनिकै मन विद्यमान नांही है ते अमनस्क हैं । ऐसे मनके सद्भाव अभावकरि संसारीनिके | दोय भेद हो हैं । इहां समासविर्षे समनस्कका पूर्वनिपात है, सो पूज्य प्रधानपणांत है । जाते समनस्ककै गुणदोपका विचारसहितपणां है, तातै प्रधान है ॥ ___फेरि संसारी जीवनिके भेदकी प्राप्तिके अर्थि सूत्र कहै हैं
॥ संसारिणत्रसस्थावराः ॥ १२ ॥ याका अर्थ- संसारी जीव हैं ते त्रस हैं तथा स्थावर हैं ऐसैं दोय प्रकार हैं ॥ इहां कोई कहै सूत्रविर्षे संसारिका ग्रहण निरर्थक है । जाते पहलै सूत्रमैं संसारिका नाम कह्या है, तातै प्रकरणतेही जानिये है। ताका समाधान, जो, निरर्थक नाही । जातें पहलै याकै अनंतर सूत्र है, तामें समनस्क अमनस्क कहे, ते संसारी ऐसे जाननेके आर्थि हैं। जो पूर्वसूत्रका विशेषण न करिये तौ ताकै पूर्वे सूत्र “ संसारिणो मुक्ताश्च , ऐसा है, सो इस सूत्रका यथासंख्य संबंध होय तब समनस्क तौ संसारी अमनस्क मुक्त ऐसा अनिष्ट अर्थ होय । तातें इस सूत्रमैं संसारीका आदिविर्षे ग्रहण युक्त है ॥ बहुरि यहु पूर्वकी अपेक्षा भी है, तैसेंही अगलीकी भी अपेक्षा है। जाते संसारी दोय प्रकारके त्रस और स्थावर है