________________
निका
पान
निके उदयकी अपेक्षारूप असिद्धपणां औदयिक है । बहुरि लेश्या द्रव्यभावरूप दोय है । सो इहां जीवके भावका अधि-11 कार है तातें द्रव्यलेश्या न लेणी । भावलेश्या लेणी । कपायनिके उदयकरि रंजित जो योगनिकी प्रवृत्ति सो लेश्या है। सो छह प्रकार है। कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्ल ऐसैं । इहां प्रश्न- जो, उपशांतकपाय क्षीणकषाय सयोगकेवली इनिवि शुक्ललेश्या आगममें कही है। तहां कपायके उदयका तौ अभाव है। औदयिकपणा नाही बनेगा। ताका
वचउत्तर आचार्य कहै हैं- जो, यहु दोप इहां नाही है । इहां पूर्वभाग जनावनेकी नयकी अपेक्षा है । जो योगनिकी प्रवृत्ति । कषायनिकरि अनुरंजित पहले थी, सोही उपचारतें इहां जाननी । ताते औदयिकही कहिये । बहुरि योगके अभावतें
अयोगकेवली लेश्यारहित है ऐसा निश्चय कीजिये है इहां कोई पूछ अन्यप्रकृतिनिके उदयतें भये भाव औदायकभावनिमें क्यों न कहे ? ताका समाधान- जो, इनिही भावनिमें गर्भित जानने । शरीरादिक पुद्गलविपाकीनिका तौ इहां जीवभाव कहनेते अधिकारही नाही । बहुरि जाति आदि जीवविपाकीगतिमें गर्भित जानने । बहुरि दर्शनावरणीयका उदय मिथ्यादर्शन कहनेते गर्भित किया है । जाते अतत्त्वार्थश्रद्धानका भी नाम मिथ्यादर्शन है । बहुरि अन्यथा देखनेका भी नाम मिथ्यादर्शन है। बहुरि हास्यादिक वेदनिके सहचारी हैं। ताते वेदनिमें गर्भित भये । बहुरि वेदनीय आयु गोत्रका उदय भी अघातिया है सो गतिमैं गर्भित जानने ॥
आगें, पारिणामिक भाव तीन भेदरूप कह्या ताके भेदनिके प्रतिपादनके आर्थि सूत्र कहै हैं
॥ जीवभव्याभव्यत्वानि च ॥७॥ याका अर्थ- जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व ए तीन पारिणामिक भावके भेद हैं ॥ ए तीन भाव पारिणामिक अन्यद्रव्य
के जानने । जातें कर्मका उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशमकी अपेक्षा इनिमें नांही है । द्रव्यके | परिणामकीही अपेक्षारूप है। तहां जीवत्व तौ चैतन्यकू कहिये । बहुरि सम्यग्दर्शनादि भावकरि परिणमैगा ताकू भव्य कहिये । बहुरि सम्यग्दर्शनादिक जाकै न होयगे सो अभव्य कहिये । ए तीन भाव जीवकै पारिणामिक हैं । इहां प्रश्नजो अस्तित्व, नित्यत्व, प्रदेशवत्त्व इत्यादिकभाव हैं ते भी पारिणामिक हैं, तिनिका भी इस सूत्रमैं ग्रहण करना चाहिये। ताका उत्तर- जो, इनिका ग्रहण नहि करना चाहिये । अथवा चशब्दकरि किया भी है। फेरि पूछे है, जो, ग्रहण किया है तो तीनकी संख्या विरोधी जाय है। तहां कहिये, जो, ए असाधारण जीवके भाव पारिणामिक तीनही हैं । बहुरि अस्तित्व आदि हैं ते जीवकै भी हैं अजीवकै भी हैं तातें साधारण हैं । यातें चशब्दकार न्यारे ग्रहण कीजिये ।