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दोहा- दर्शनबोध यथार्थता । नयलक्षण बणवाय ॥
ज्ञान पंचकै मानता। कही आदि अध्याय ॥१॥
सर्वार्थसिद्धि
सवईया तेईसा- जे पढि हैं अधिकार यहै नर ते चढि हैं निजरूप रमंता ।
जे कढि हैं मुख यामय वाक्य सु चढि हैं सब ऊपरि संता ॥ जे कार हैं निति पूजन भव्य सुपुण्य लहै परलोक गमता । जे परि हैं थुति गाय सुपाय निबोध फुरै तिनिकू जु अनंता ॥ १ ॥
टीका
ऐसें तत्वारथका है अधिगम जाते ऐसा जो मोक्षशास्त्र ताविर्षे प्रथम अध्याय संपूर्ण भया ।
इति श्री परमपूज्य धर्मसाम्राज्यनायक योगीद्रचूडामणि, सिद्धातपारंगत, चारित्रचक्रवर्ति श्री १०८ आचार्य श्रीशांतिसागरजी महाराजके
आदेशसे ज्ञानदानके लिए श्री. प. पू. चा. च. आ. श्री १०८ शांतिसागर दिगंबर जैन जीर्णोद्धारक संस्थाकी ओरसे छपी हुी श्री तत्वार्थसृत्रकी श्रीमत्पूज्यपादाचार्य विराचित सर्वार्थसिद्धीकी पंडित जयचंदजीकृता टीका
वचनिकाविषै प्रथम अध्याय संपूर्ण भया ॥१॥ ग्रंथ प्रकाशन समिति फलटण; वीर सं. २४८१
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