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सवार्थ
वचनि का पान
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होय है सो शास्त्रका श्रवण पठन पाठन निरंतर करनां योग्य है । यहही भव्यजीवनिकू स्वर्गमोक्षका साधन है॥
अब प्रमाणनयनिकरि तत्त्वार्थनिका अधिगम कहिये ज्ञान हो है ताका स्वरूप कहिये हैं । तहां तत्त्वार्थाधिगम दोय | प्रकार है, स्वार्थ परार्थ ऐसें । तहां स्वार्थ तौ ज्ञानस्वरूप है । बहुरि परार्थ वचनात्मक है । सो भी दोय प्रकार है।
एक तौ वीतरागीकै होय है। ताकू वीतरागकथा कहिये । दूसरा वादी प्रतिवादी जिनिकै हार जीतकी इच्छा होय तिनिकै सिद्धि
| होय है । ताकू विजिगीपुकथा कहिये । तहां वीतरागकै तौ गुरुशिष्य होय तथा विशेपज्ञानी दोनही होय तिनिकै होय । टीका
तहा वीतरागीनिकी चरचाकी हद तो तत्त्वनिर्णय हो चुकै तबताई है । बहुरि वादीप्रतिवादीनिकै हारजिती होय चुकै २ तबताई कहै । तहा इसके च्यारि अंग हैं। वादी प्रतिवादी सभाकेलोक सभापति ऐसें । वादी प्रतिवादीविना तौ
वाद प्रवतही नाही । सभाकेलोकविना साख कौन भरै । सभापतिविना हारे जीते निग्रह अनुग्रह कौन करै । ताते चाोही चाहिये।
इहा नैयायिक कहै हैं- जो, वाद है सो तत्त्वनिर्णयका कारण है । यात तत्त्वनिर्णय दृढ होय है । जगमैं सत्यार्थतत्त्वकी प्रभावना होय तव लोकमै प्रतिष्ठा होय तातें यहही वीतरागकथा है । ताकू कहिये, जो, वीतरागकथाविपें तो सभाका तथा सभापतिका नियम नाही । बहुरि विजिगीपुकथावि नियमही है । बहुरि कही जो वादविर्षे सर्वलोककै तत्त्वकी दृढता होय है प्रभावना होय है, सो यह तो सत्य है । परंतु जहां आपकी हार होय तहां स्वमतका विध्वंस भी होय है । सो वाद तौ हारीजीतिहीका कारण हैं, तातै वीतरागीनिकै यह संभवै नाही । बहुरि जहा अपनी ऐसी सामर्थ्य होय, जो, मै वादमै हारूंगा नाही जीतूंगाही, तौ या सामग्री बहुत चाहिये । प्रथम तौ यथार्थहेतुवाद अहेतुवादकरि आपकै तत्त्वका निर्णय चाहिये । दूसरा तपश्चरणादिकार अपनी प्रतिष्ठा जगतमैं भई होय ऐसा चाहिये। | बहुरि कछु देवता इष्टका अतिशय चमत्कारकी आपकै सिद्धि भई चाहिये । बहुरि राजा आदिकी पक्ष अपनी चाहिये । पक्षविना आप सांचा भी होय तौ निप्पक्षीकौ पैला पक्ष प्रबलवाला झूठा करि डारै इत्यादि सामग्री होय, अवश्य जीतनेका आपका निश्चय होय तव वाद जीति मतकी प्रभावना करै तौ उचितही है । विनासामग्री वाद करै अरु हारै तौ स्वमतका विध्वंसही होय है। तातें यह निश्चय जानूं, जो, वाद एकांततें तो तत्वनिर्णयकू कारण नाही, हारजीतिही मुख्यता हा है । बहुरि वीतरागकथा है सोही तत्त्वनिर्णयकू कारण है ॥
ऐसें इस प्रथम अध्यायवि ज्ञानका बहुरि दर्शनका तौ स्वरूप वर्णन किया । बहुरि नयनिका लक्षण कह्या । बहार 12 ज्ञानका प्रमाणपणां कह्या ॥
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