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स्वार्थ
10वच
| तैसेंही सर्वनयके विपयवि विधिनिषेध लगाय साधने । इहां कोई पूछै; जो, द्रव्यार्थिक पर्यायाथिक नयके भेदरूप नैगमादिक सात भेद कहे ते तो जाणे। परंतु शास्त्रनिमें निश्चय व्यवहार नयकी कथनी बहुत है । सो यहु न जाणी, जो ये निश्चयव्यवहारनय कहां कहै है ? इनिका विपय कहा है ?। ताका उत्तर- जो, नयचक्र ग्रंथ गाथाबंध है।
तहां ऐसे कया है- जो निश्चयनय व्यवहारनय हैं ते सर्व नयनिका मूलभेद हैं । इनि दोय भेदनितै सर्वनयभेद प्रवत सद्धि
है। तहां निश्चयके साधने कारण द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक दोऊ नय हैं । वस्तुका स्वरूप द्रव्यपर्यायस्वरूपही है। ताते का इनि दोऊ नयनितें साविये है । ताते ये दोऊही तत्त्वस्वरूप हैं। सत्यार्थ हैं ॥
| पान बहुरि व्यवहार है मो उपनय है । ताके तीन भेद है सद्भूत व्यवहार, असद्भूतव्यवहार, उपचरितव्यवहार । तिनिके उत्तर भेद आठ है । तहां सद्भूतके दोय भेद । तहां गुणगुणी तथा पर्यायपर्यायी द्रव्यनिविर्षे कर्ताकर्म आदि कारककी २ प्रवृत्तिके सद्भावतें संज्ञा संख्या लक्षण प्रयोजनादिकके भेदते शुद्धद्रव्यवि भेद कहै । सो तौ शुद्धसद्भूतव्यवहार है।
तैसेही एकद्रव्यकै एकही प्रदेश है, भिन्नक्षेत्र नाही, तौ संख्यात असंख्यात अनंतप्रदेशादिक कहै । सोऊ शुद्धसद्भुतव्यवहार है । बहुरि एकही द्रव्य परके निमित्तते विकार उसही सत्मैं भया था ताकी अपेक्षा लेकर संज्ञादिककरि भेद कहै है । तहां अशुद्धसद्भूतव्यवहार है । ऐसें दोय भेद सद्भूतव्यवहारके भये ॥
बहुरि अन्यवस्तूका गुण अन्यके कहै सो असद्भूतव्यवहार है । ताके तीन भेद । तहां जैसै बहुत पुद्गलके परमाणु। द्रव्य मिलि एक स्कंध नाम पर्याय बण्या ताकू कहे ' ए पुद्गलद्रव्य है, तहां समानजातीय असद्भूतव्यवहार भया ।
बहुरि जहां एकेंद्रियादिक देह ते पुद्गलस्कंध हैं तिनिकू जीव कहै । तहां असमानजातीय असद्भूतव्यवहार भया । बहरि जहां मतिज्ञानकू मूर्तिक कहनां जातें मूर्तिकर्ते उपजै है तथा रुकै है । तहां मतिज्ञान तो अमूर्तिक जीवका धर्म है। बहुरि मूर्तिकपणां पुद्गलका धर्म है । तहां मिश्र असद्भूतव्यवहार भया । तथा ज्ञेयविर्षे ज्ञान है ऐसे कहनां तहां ज्ञेय जीव अजीव दोऊ है । तातें भी मिश्र भया । ऐसें तीन भेद असद्भूतव्यवहारके भये ॥
बहुरि उपचारव्यवहारके भी तीन भेद हैं । तहां द्रव्य गुण पर्यायके परस्पर उपचार करिये तब भेद होय है।। तहां एकप्रदेशी परमाणूकू बहुप्रदेशी पुद्गलद्रव्य कहनां तहां द्रव्यविर्षे पर्यायका उपचार भया । बहुरि महलकू श्वेत कहनां तहां द्रव्यवि4 गुणका उपचार भया । बहुरि मतिज्ञान ज्ञानकू कहनां तहां गुणके विर्षे पर्यायका उपचार भया । बहुरि स्कंधपर्यायकं पुद्गलद्रव्य कहनां तहां पर्यायके विर्षे द्रव्यका उपचार भया । बहुरि देहकू सुंदर देखि ताकू उत्तम रूप कहनां तहां पर्यायविर्षे गुणका उपचार भया । इत्यादिक उपचार जानने । बहुरि उपचारका उपचारकरि तीन