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सर्वार्थ
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गमन करै तिस कालही गऊ कहै बैठीकू गऊ न कहै सूतीकू गऊ न कहै । अथवा जिस स्वरूपकार जिसका ज्ञान तदाकार भया होय तिसही स्वरूपकार निश्चय करावै । जैसें इंद्रका आकाररूप ज्ञान परिणया होय तथा अग्निका आकाररूप ज्ञान भया होय तिस ज्ञानसहित आत्माकू इंद्र तथा अग्नि कहै । इहां कोई कहै नामक्रियारूप परिणयाकूही कहै तौ नामके कारण तो जाति, गुण, द्रव्य भी है तिनकू कैसैं कहै ? ताकू कहिये, जेते जाति आदिकतै भये नाम हैं
वचसिद्धि ते सर्वही क्रियावि4 अंतर्भूत है विनाक्रिया निष्पत्ति नाही । जैसें जातिवाची अश्वशब्द है, सो भी शीघ्रगमन क्रिया करै
| ताळू अश्व कहिये, ऐसे क्रियावाची होय है । तथा शुक्ल ऐसा गुणवाची शब्द है, सो शुचिक्रियारूप परणवै, ताकू शुक्ल || पान
कहिये, ऐसे क्रियावाची होय है । तथा दंडी ऐसा संयोगी द्रव्यवाची है, सो भी दंड जाकै होय ताकू दंडी कहिये, ऐसै क्रियावाची हाय है । तथा विपाणी ऐसा समवायद्रव्यवाची शब्द है, सो भी विपाण कहिये, सींग जाकै होय, ताकू है। विपाणी कहिये । ऐसही वक्ताकी इच्छातै भया नाम, जैसै देवदत्त ऐसा काहूका नाम वक्ता कह्या ताका भी जब स्वार्थ करिये, तब जो देव दिया होय, तथा देवनिमित्त दे, ताक़ देवदत्त कहिये, ऐसे क्रियावाची होय है, ऐसें जाननां ॥
ऐसै ए नैगमादिक नय कहे ते आगै अल्पविपय है । तिस कारणतै इनिका पाठका अनुक्रम है। पहलै नैगम कह्या ताका तौ वस्तु सद्प तथा असद्प इत्यादि अनेकधर्मरूप है । ताका संकल्प विपय है । सो यह नय तौ सर्वते महाविपय है । याकै पीछे संग्रह कह्या सो याका विपय सत् द्रव्यत्व आदिही है । इनिकै परस्पर निपेधरूप जो असत् आदि सो विपय नांही है । तातें तिसतै अल्पविषय है । बहुरि याके पीछे व्यवहार कह्या सो याका विषय संग्रहके विपयका भेद है। तहां अभेद विपय रहि गया । ताते तिसते अल्पविपय है। बहुरि याकै पीछे ऋजुसूत्र कह्या सो याका विपय वर्तमानमात्र वस्तुका पर्याय है सो अतीत अनागत रहि गया । तातै तिसते अल्पविषय है । याके पीछे शब्दनय कह्या सो याका विषय वस्तुकी संज्ञा है । एक वस्तूके अनेक नाम हैं। तहां काल कारक लिंग संख्या साधन उपग्रहादिक भेदतें अर्थकू भेदरूप कहै । सो इनिका भेद होते भी वर्तमानपर्यायरूप वस्तूकू अभिन्न मानता जो ऋजुसूत्र तातें अल्पविपय भया । जाते एक भेद करतें अन्य भेद रहि गये । बहुरि याकै पीछै समभिरूढ कह्या, सो एक वस्तुके अनेक नाम हैं तिनिकू पर्यायशब्द कहिये तिनि पर्यायशब्दनिका एकही अर्थ मानता जो शब्दनय तातै समभिरूढ अल्पविषय है । तातै तिनि पर्यायशब्दनिके जुदे जुदे भी अर्थ है । सो यहू जिस शब्दकू
पकडै तिसही अर्थरूपकू कहै । तब अन्य शब्द यात रहि गये तातें अल्पविषय भया । बहुरि एवंभूत याके पीछे 2. कह्या । सो याका विषय जिस शब्दकू पकड्या तिस क्रियारूप परिणमता पदार्थ है । सो अनेकक्रिया करना ।