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सिद्धि टीका
" बहुरि ' रमते । ऐसा आत्मनेपदी धातु है ताका विरमति उपरमति । ऐसा भया । ऐसें उपसर्गके बलतें आत्मनेपदी || धातूका परस्मैपदवचन भया । बहुरि परस्मैपदीका आत्मनेपदी भया । ऐसें उपग्रहव्यभिचार है ॥
बहुरि कारकव्यभिचार · सेना पर्वतमधिवसति । इहां सेना पर्वतके समीप वसै है ऐसा आधार है, सो सप्तमी १ विभक्ति चाहिये, तहां द्वितीया कही । तातै कारकव्यभिचार भया । या प्रकार व्यवहार नय है ताहि अन्याय मान है। सर्वार्थ२ जाते अन्य अर्थका अन्य अर्थकरि संबंध होय नाही । जो अन्य अर्थका अन्यतै संबंध होय, तो घटका पट होय
जाय, पटका महल हो जाय । तातें जैसा लिंग आदि होय तैसाही न्याय है । इहां कोई कहै, लोकवि तथा शास्त्रवि विरोध आवेगा । ताकू कहिये, विरोध आवै तौ आवो, इहां तौ यथार्थस्वरूप विचारिये है । औषधी रोगीकी इच्छाकै अनुसार तो है नांही ॥
आगें, समभिरूढनयका लक्षण कहै हैं । नाना अर्थनिविर्षे समभिरोहणात् कहिये प्राप्त होनेतें समभिरूढ है । जाते एकशब्दके अनेक अर्थ हैं, तिनिमैसूं कोई एक अर्थकू ग्रहणकरि तिसहीकू कह्या करै, जैसे, गौ ऐसा शब्द वचनादि अनेक अर्थविपैं वर्ते है । तो भी गऊ नाम पशुका ग्रहणकरि तिसहीकू गऊ कहै । अथवा शब्दका कहना है, सो अर्थगतिकै अर्थि है । तहां एक अर्थका एकही शब्दकार गतार्थपणा है, तातै वाका दुसरा पर्यायशब्द कहिये नाम कहनां सो निष्प्रयोजन है । इहां कोई कहै, शब्दका तौ भेद है। ताकू कहिये अर्थभेद भी अवश्य चाहिये । ऐसे यहु समभिरूढनय नाना अर्थवि प्राप्त होय है, तातें समभिरूढ है । जैसे इंदनात् कहिये परमैश्वर्यरूप क्रिया करै तब इंद्र है । शकनात् कहिये समर्थरूप वर्ते तब शक्र कहिये । पूर्दारणात् कहिये पुरके विदारणक्रियारूप वर्ते तब पुरंदर है । ऐसें यहु समभिरूढनय एकही अर्थकू ग्रहणकरि प्रवर्ते है । अथवा जो जहां प्राप्त है तहांही प्राप्त होय करि वर्ते है, तातें समभिरूढ है । जैसै काहूकू कोई पूछै तूं कहां तिष्ठै है ? वह कहै, में मेरे आत्मावि तिष्ट्रं हूं ऐसे भी समभिरूढ है । जातें अन्यका अन्यविर्षे प्रवर्तना न हो है । जो अन्यका अन्यविर्षे प्रवृत्ति होय, तो ज्ञानादिककी तथा रूप आदिककी आकाशवि भी वृत्ति होय । सो है नांही ॥
आगें एवंभूतनयका लक्षण कहै हैं । जिस स्वरूपकरि जो वस्तु होय तिसही स्वरूपकरि ताकू कहै, निश्चय करावै सो एवंभूत है । जो वस्तु जिस नामकरि कहिये तिसही अर्थकी क्रियारूप परिणमता होय तिसही काल वा वस्तूकू तिस नामकरि कहै अन्यकाल अन्यपरिणतिरूप परिणमताकू तिस नामकरि न कहै । जैसे इंद्र ऐसा नाम है, सो परमैश्वर्यरूप किया करता होय तबही इंद्र कहै, अभिषेक करतें तथा पूजा करतें ताकू इंद्र न कहै । तथा जिस काल