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जो प्रत्यक्ष अनुमान करि बाधित ऐसा सर्वथा एकांतरूपकरि ग्रहण करनां सो तौ विरुद्धरूप है- नयाभास है । बहुरि । | जो वस्तुका धर्म कथंचित्प्रकार अनेकांतस्वरूप ग्रहण करै, सो सर्वनय समानधर्मरूप भये । तिनिमैं विरोध काहेका ?
जैसे साध्यवस्तुका समानधर्मरूप दृष्टांत कहिये, तामै विरोध नाही तैसें इहां भी अविरोध है । याका उदाहरण, जैसे सर्वार्थसर्ववस्तु सद्प है । जातें अपने द्रव्य क्षेत्र काल भावकू लिये है ॥
वचसिद्धि
सो यह नय संक्षेपते दोय प्रकार है, द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक ऎसें । तहां द्रव्य तथा सामान्य तथा उत्सर्ग तथा निका टी का l | अनुवृत्ति ए सर्व एकार्थ है । ऐसा द्रव्य जाका विषय सो द्रव्यार्थिक है। बहुरि पर्याय तथा विशेप तथा अपवाद अश तथा व्यावृत्ति ए सर्व एकार्थ है । ऐसा पर्याय जाका विषय सो पर्यायार्थिक है । इनि दोऊनिके भेद नैगमादि है । ९४
तहां नैगम, संग्रह, व्यवहार ए तीन तौ द्रव्यार्थिक है । बहुरि ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ, एवम्भूत ए च्यारि पर्यायार्थिक है । तामै भी नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र ए च्यारि तौ अर्थकू प्रधानकरि प्रवते है तातें अर्थनय कहिये। बहुरि शब्द, समभिरूढ, एवंभूत ए तीन शब्दकू प्रधानकरि प्रवर्ते है तातें शब्दनय कहिये । इहां कोई पूछ, पर्यायार्थिक तौ नय कह्या अरु गुणार्थिक न कह्या सो कारण कहां ? ताका उत्तर सिद्धांतमें पर्याय सहभावी क्रमभावी ऐसें दोय प्रकार कहै है । तहां सहभावीपर्यायकू गुण संज्ञा कही है । क्रमभावीकू पर्यायसंज्ञा कही है। तातै पर्याय कहनेतें यामै गुण भी जानि लेना ऐसें जाननां । विस्तारकरि ए सात नय कहे । बहुरि अतिविस्तारकरि नय संख्यात है। जाते जेते शब्दके भेद है तेतेही नय कहे हैं।
अन्यमती बौद्ध तो विज्ञान, वेदना, संज्ञा, संस्कार, रूप ए पाच स्कंध कहै हैं। बहुरि नैयायिक प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टात, सिद्धांत, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितंडा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रहस्थान ऐसै सोलह b पदार्थ कहे हैं । बहुरि वैशेपिक द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेप, समवाय, अभाव ऐसै सात पदार्थ कहै हैं । वहुरि ।
सांख्य एक तो प्रकृति, बहुरि प्रकृतिके विकार प्रधान १ । अहंकार २ । कर्मेंद्रिय ५ । ज्ञानेंद्रिय ५ । मन १ । स्पर्श रस गंध वर्ण शब्द ए ५ । तन्मात्रा; बहुरि पृथ्वी अप् तेज वायु आकाश ए पंचभूत ऐसे तेईस प्रकृतिके विकार बहुरि एक पुरुप निर्विकार ऐसे पचीस तत्त्व कहै है । ते सर्वही द्रव्यपर्यायसामान्यवि4 अंतर्भूत है । कथंचित् वस्तुधर्म हैं। ताते सुनयके विपय हैं । वहरि अन्यवादी इनिङ सर्वथाएकांत अभिप्रायकरि कल्पे हैं । सो तिनिका अभिप्राय | मिथ्या है ऐसे जाननां ॥ a आगें नयनिका विशेपलक्षण कहै हैं । तहां प्रथमही नैगमका कहै हैं । अपने सन्मुख वर्तमानकालविर्षे पूर्ण रच्या al