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सिद्धि
अश
lal हुवा वस्तु नाही, ताका अपने ज्ञानविर्षे संकल्प करनां जो, ' यहु वस्तु इस वर्तमानकालमैं है- ऐसै संकल्पका ग्रहण ||
करनेवाला अभिप्राय सो नैगमनय है । इहां उदाहरण, जैसे काहू पुरुषकू कोई पुरुष कूहाडी लिये चालताळू पूछी “तूं कौण अर्थ जाय है ? " तब वह कहै, मैं प्रस्थ लेनेकू जाऊं हूं। तहां वाकै प्रस्थ अवस्था निकट बण्या विद्यमान नांही । जायकरि लकडी काटि प्रस्थ बणावेगा, तब होगा । परंतु वाके मनवि ज्ञानमैं प्रस्थका संकल्प विद्यमान है,
वचसर्वार्थFile] सोही इस नैगमनयका विषय है । इहां प्रस्थ ऐसा परिमाणविशेषका नाम है । लकडीके पाई, माणी इत्यादि धान्य
नि का तोलणेकै बणै हैं, ताका नाम है । तथा कोई याका अर्थ लकडीका भारा भी कहै हैं । तथा कोई पुरुष ईधन जल पान टीका
आदि सामग्री भेली करै था, ताकू कोई पूछी, तूं कहा करै है ? तब वह कहै, मै भात पचाऊं हूं, तब तहां भात अवस्था तिसकै निकट वर्तमान नाही, भात पचेगा तब होयगा । तथापि तिस भातकै अर्थि व्यापार करते आगामी भात पचैगा ताका संकल्प याके ज्ञानमैं विद्यमान अनुभवगोचर है । सो यहु संकल्प नैगमनयका विषय है । ऐसीही विना रची दूर क्षेत्र कालमें वर्तती जो वस्तु ताका संकल्प यहु नैगमनय अपना विषय करै है ॥ इहां कोई पूछ। आगामी होणी विर्षे वर्तमान संज्ञा करी । तातें यहु तो उपचारमात्र भया ॥ ताडूं कहिये- बाह्य वस्तुकी याकै मुख्यता
नाही, अपने ज्ञानका संवेदनरूप संकल्प विद्यमान है । सो याका विषय है । तातें उपचारमात्र नांहि । बहुरि याका विषय एकही धर्म नाही, अनेक धर्मनिका संकल्प है, तातें भी याकू नैगम कया है। दोय धर्म तथा दोय धर्मी, तथा एक धर्मी एक धर्म ऐसे याके अनेकप्रकार संकल्पते अनेकभेद हैं। कोई कहै, ऐसें तौ दोऊनिका ग्रहण करनेतें यह प्रमाणही भया । ताकू कहिये, प्रमाण तो दोऊनिकू प्रधानकरि जानै है । यहु नैगम दोऊमैं एकळू प्रधान करै है,। एककू गौण करै है, ऐसा विशेष जाननां ॥
या नैगमके भेद तीन हैं । द्रव्यनैगम, पर्यायनैगम, द्रव्यपर्यायनैगम । तहां द्रव्यनैगमके दोय भेद है; शुद्धद्रव्यनैगम अशुद्धद्रव्यनैगम । बहुरि पर्यायनैगमके तीन भेद, अर्थपर्यायनैगम व्यंजनपर्यायनैगम, अर्थव्यंजनपर्यायनैगम । बहुरि द्रव्यपर्यायनैगमके च्यारि भेद शुद्धद्रव्यार्थपर्यायनैगम, अशुद्धद्रव्यार्थपर्यायनैगम, शुद्धद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगम अशुद्धद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगम । ऐसै नैगमनयके नव भेद भये । तहां उदाहरण- जो, संग्रहनयका विषय सन्मात्र शुद्धद्रव्य है ताका यहु नैगमनय संकल्प करै है जो सन्मात्र द्रव्य समस्तवस्तु है, ऐसे कहै तहां सत् तौ विशेषण भया तातें गौण है। बहुरि
द्रव्य विशेष्य भया तातें मुख्य है । यहु शुद्धद्रव्यनैगम है । बहुरि जो पर्यायवान् है सो द्रव्य है, तथा गुणवान् है सो ी द्रव्य है ऐसा व्यवहारनय भेदकरि कहै है । ताका यह नैगमनय संकल्प कहै है । तहां पर्यायवान् तथा गुणवान् यहु